इस बार संसद के विशेष सत्र के दौरान, पिछले कई वर्षों से अटका हुआ महिला आरक्षण बिल पेश हो सकता है. संसद का विशेष सत्र शुरू होने के बाद मोदी सरकार पहला बिल महिला आरक्षण पर पेश कर सकती है. ये बिल पेश किया जा सकता है लोकसभा और राज्यसभा दोनों में जब इसे कैबिनेट से पारित कर दिया जायेगा. कांग्रेस सांसदों ने इस विधेयक को संसद में पारित करने की मांग भी की थी.
2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा के मनिफेस्तो में महिलाओं को आरक्षण देने की बात की गयी थी. संसद और विधानसभा में 33% आरक्षण देने का वादा किया गया था. कुछ मुख्य विपक्षी दलों का कहना है कि इसी विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल को पास करा दिया जाएगा. हैदराबाद में हुई कांग्रेस वोर्किंग समिति (CWC) की बैठक में इसे लेकर प्रस्ताव भी पारित किया गया. BRS भी महिला और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण का मुद्दा उठाने को तैयार है. और साथ ही RSS ने भी महिला आरक्षण के समर्थन में आवाज़ उठाई है.
क्या है महिला आरक्षण बिल?
लोकसभा में अभी महिला सांसदों की संख्या 15 प्रतिशत से कम है और कई राज्यों के विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से भी कम है. महिलाओं के आरक्षण के लिए 27 सालों से ज्यादा दिनों से ज़ोर दिया जा रहा है.
महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है. 12 सितंबर 1996 को पहली बार संसद में पेश किया गया था ये बिल. इस बिल में लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है. इस समय लोकसभा में सिर्फ 14 प्रतीषद महिलाऐं हैं. इसका मतलब 545 में सिर्फ 78 महिलाऐं ही लोकसभा में सांसद हैं.
क्यों की गयी हैं महिलाओं के लिए सीट आरक्षित?
इस बिल में लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई है. इसे 128वें संविधान संशोधन विधेयक के तहत पेश किया गया है. इस विधेयक से महिला सशक्तिकरण को मजबूती मिलने के साथ ही आधी आबादी के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा.