सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने घोषणा की कि दिग्गज अभिनेत्री वहीदा रहमान को 2021 का दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलेगा. पांच दशकों से ज्यादा उल्लेखनीय करियर के साथ, वहीदा रहमान को ‘CID’, ‘प्यासा’, ‘गाइड’, ‘कागज़ के फूल’ जैसी फिल्मो में उनकी भूमिकाओं के लिए जाना जाता है. उनकी प्रशंसाओं में पद्म भूषण और पद्म श्री शामिल हैं. दादा साहब फाल्के पुरस्कार देश का सर्वोच्च फिल्म सम्मान है और सरकार द्वारा दिया जाता है.

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केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए अभिनेत्री वहीदा रहमान को सम्मानित करने पर बेहद ख़ुशी व्यक्त की है.

दादा साहब फाल्के पुरस्कार की पिछले साल की विजेता वहीदा रहमान की गहरी दोस्त आशा पारेख थी. और वहीदा रहमान इस साल के अंत में होने वाले एक समारोह में इस पुरस्कार को प्राप्त करेंगी. 2002 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार पाने वाले देव आनंद आज 100 साल के होते और उनकी महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक है 1965 की ‘गाइड’ जिसमे वो सह-कलाकार थे वहीदा रहमान के.

अपने मन के मुताबिक काम करने वाली वहीदा

वहीदा रहमान ने अपनी फिल्मों की शुरुआत भले की कम उम्र से की हो पर उन्होंने अपने हमेशा स्वतंत्र निर्णय लिए. उन्होंने एक फिल्म में स्विमसूट पहनने से माना कर दिया था और कहा था कि वो सिर्फ वहीं कपड़े पहनेंगी जो उन्हें ठीक लगेंगे और भले ही फिल्मों के बाद वो कुछ भी पहने.

उनके किरदार इस सोच से झलकते हैं. उनके किरदार रूढ़िवादी नहीं थे. उनकी देव आनंद के साथ आई फिल्म ‘गाइड’ में वो एक ऐसी महिला के रूप में हैं जो अपने पति को छोड़ देती है क्यूंकि वो अपने शादी से खुश नहीं है. निर्देशक सत्यजित रे की 1962 की फिल्म अभिजन में वहीदा रहमान ने एक स्वतंत्र विचारों वाली महिला की भूमिका निभाई है.

वहीदा रहमान ने खुद को कभी खूबसूरत नहीं माना. उन्होंने अपने मेकअप आर्टिस्ट और फोटोग्राफर की हमेशा तारीफ की. वहीदा रहमान का जन्म चेन्नई से करीब साठ किलोमीटर दूर चेंगलपट्टू में 3 फरवरी 1936 में हुआ. उन्होंने सिर्फ 9 साल की उम्र में भरतनाट्यम का प्रशिक्षण शुरू कर दिया था. और अपना मंच प्रदर्शन भी स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल सी. राजगोपालाचारी के सामने दिया था.

वहीदा रहमान और गुरु दत्त

गुरु दत्त ने वहीदा रहमान के साथ पांच फिल्मों में काम किया. ये फिल्में थीं, प्यासा (1957), 12’ओ क्लॉक (1958), कागज के फूल (1959), चौदहवीं का चांद (1960) और साहिब बीबी और गुलाम (1962). यह भी अफवाह थी कि वहीदा रहमान गुरु दत्त की प्रेमिका थीं. पर वहीदा रहमान ने अपने निजी जीवन की हमेशा रक्षा की. और इन अफवाहों का जवाब देते हुए कहा कि अगर हर निर्देशक अपनी अभिनेत्री से थोड़ा प्यार करेगा तो वो अपने अभिनेत्री को दुनिया की सबसे खूबसूरत अभिनेत्री के रूप में पेश करेगा.

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85 वर्षीय अभिनेता ने 1955 में ‘रोजुलु मारायी’ से तेलुगु सिनेमा में अपनी शुरुआत की और बाद में 1956 में देव आनंद के साथ ‘सीआईडी’ से हिंदी सिनेमा में कदम रखा. वहीदा रहमान शास्त्रीय नर्तकी के रूप में कुछ तमिल और तेलुगु फिल्मों में काम किया. इससे पहले कि गुरु दत्त ने उन्हें देखा इस घटना का काल्पनिक संस्करण गुरु दत्त की फिल्म ‘कागज़ के फूल’ में देखा जा सकता है.

वहीदा रहमान ने हिंदी फिल्मों में अभिनय करियर की शुरुआत गुरु दत्त की 1956 की फिल्म ‘CID’ से की. इस फिल्म में उनकी एक छोटी सी भूमिका थी, लेकिन बाद में उन्हें ऐसी भूमिकाएँ निभानी पड़ीं जो सामान्य रोमांटिक महिला से बहुत अलग थीं.

उस वक्त की अभिनेत्रियाँ बहुत बहुत आम किरदार करती थीं. लेकिन वहीदा रहमान ने अपने गुरु को ही पीछे छोड़ दिया 1959 की फिल्म ‘कागज़ के फूल’ में, जो जो बॉम्बे फिल्म उद्योग में गुरु दत्त की सबसे निजी फिल्म थी. वहीदा रहमान 1950 से लेकर 2021 तक, उनकी फिल्म ‘CID’ से लेकर ‘स्केटर गर्ल’ तक, बॉम्बे के फिल्म उद्योग द्वारा निर्मित सर्वश्रेष्ठ अभिनेता हैं.

वहीदा रहमान का करियर गुरु दत्त के निर्मित फिल्मों से हुआ. उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘CID’ भी गुरु दत्त ने निर्मित की और इस फिल्म में मुख्य अभिनेता थे देव आनंद. वहीदा रहमान इस फिल्म में मुख्य नायिका नहीं हैं. उन्होंने कामिनी का किरदार निभाया है.

गुरु दत्त की प्यासा साल 1957 में परदे पर आई. ये फिल्म, ‘CID’ के तुरंत बाद बनी. ‘प्यासा’ गुरु दत्त की सिग्नेचर फिल्म है. यह वह फिल्म है जिसमें वह भौतिकवादी दुनिया से घिरे उपेक्षित, आत्म-दयालु कलाकार की भूमिका में स्थापित होते हैं. वहीं, वहीदा रहमान, इस फिल्म में एक वैश्या की भूमिका में हैं. लेकिन उनका चरित्र गुरु दत्त की शहीद बात को स्पष्ट करने के लिए मौजूद है कि एक कवि की सराहना करने के लिए एक वेश्या की आवश्यकता होती है क्योंकि सम्मानित बुर्जुआ समाज वास्तविक कला की सराहना करने के लिए बहुत मूर्ख है. इस फिल्म को एक रोमांटिक फिल्म के रूप में समझना गलत होगा. फिल्म ‘प्यासा’ में अभिनेता गुरु दत्त को प्यार की तलाश नहीं है बल्कि उन्हें चाहिए कोई जो एक बच्चे की तरह देख-भाल कर सके.

गुरु दत्त की अगली फिल्म ‘कागज़ के फूल’ में भी उनकी अभिनेत्री वहीदा रहमान ही थी. ये फिल्म है एक असफल निर्देशक की, जिसके असफल होने के बाद पैसे की लालची दुनिया ने उसे त्याग दिया है. एकमात्र व्यक्ति जो उसके साथ खड़ा है, वह वहीदा है, जिस लड़की को उसने स्टार बनाया था, जो उससे प्यार करती है लेकिन बाद में वो भी उसे छोड़ देती है. और फिर गुरु दत्त अकेले मर जाते हैं, उसी स्टूडियो में जिसकी उन्होंने कभी कमान संभाली थी, निर्देशक की कुर्सी पर बैठे हुए.

गुरु दत्त की एक और महान सामाजिक फिल्म है ‘चौदहवीं का चांद’. इस फिल्म में वहीदा रहमान ने जमीला का किरदार निभाया है, जिससे एक लखनवी नवाब को प्यार हो जाता है. लेकिन, गुरु दत्त का किरदार असलम, पर्दा-प्रेरित गलत पहचान के कारण जमीला से शादी कर लेता है और लंबे समय से चली आ रही पुरुष मित्रता को नष्ट किए बिना इस असंभव परिस्थिति को हल करने की कोशिश करता है. इस फिल्म के गीत, ‘चौदहवीं का चांद हो, या आफताब हो’ को सबसे ज्यादा याद किया जाता है. ये फिल्म लखनवी नवाब के हीरा खा कर आत्महत्या पर ख़त्म होती है.

यह आकर्षक है लेकिन ‘चौदहवीं का चांद’ को ‘अजीब’ कहना अनुचित है। हालाँकि यह पुरुष प्रेम की कहानी है, लेकिन उस प्रेम की प्रकृति समलैंगिक न होकर समलैंगिक है. हमारे जैसे समाजों में, जहां युवा पुरुष और महिलाएं अक्सर यौन रूप से अलग जीवन जीते हैं, दोस्ती, परिभाषा के अनुसार, लगभग पुरुषों का साथ है. इस फिल्म में रहमान और गुरु दत्त के बीच के रिश्ते के बारे में जो उल्लेखनीय है वह असलम की पुरुष मित्रता की वेदी पर अपनी शादी का ‘बलिदान’ करने पर विचार करने की व्यथित इच्छा.

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वहीदा रहमान साल 1965 में उस समय के स्टार देव आनंद के साथ उनकी सबसे यादगार फिल्म में नज़र आयीं. और यह फिल्म थी ‘गाइड’. इस फिल्म में वहीदा रहमान ने रोजी की भूमिका निभाई थी जो की एक नर्तकी थी. रोजी अपने प्रेमी (देव आनंद) से प्रोत्साहित होके अपने करियर की सफलता के लिए अपने पति जो छोड़ देती है. वहीदा रहमान को इस भूमिका के लिए चेतावनी दी गयी थी की उनका करियर बर्बाद हो सकता है क्यूंकि ये एक ऐसे समय की फिल्म है जब प्रमुख महिलाओं से सद्गुणी होने की उम्मीद की जाती थी, लेकिन वह आगे बढ़ीं और फिर भी ऐसा किया. और इसके बाद, इस किरदार के लिए उन्होंने फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी जीता.

एक और ऐसा ही किरदार वहीदा रहमान ने अपनी फिल्म ‘मुझे जीने दो’ में निभाया था. इस 1962 की फिल्म में उन्होंने एक वैश्या, चमेली बाई की भूमिका निभाई थी. चमेली बाई एक डकैत से शादी करती और और चम्बल के बीहड़ों में एक कठिन जिंदगी में उसका पीछा करती है. इसमें उनके सह-कलाकार सुनील दत्त डकैत बने थे.

इस महान अभिनेत्री ने विभिन्न भाषाओं में 90 से अधिक फिल्मों में काम किया गई. उनकी 1971 की फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ में एक कुलवधू की भूमिका के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला.