4 अक्टूबर, बुधवार को, एक ‘पहाड़ी सुनामी’ अचानक लाचेन नदी पर बरसी. लाचेन नदी एक सहायक नदी है तीस्ता की जो की सिक्किम की सबसे बड़ी नदी मानी जाती है. रात के घुप्प अँधेरे में, विशाल दक्षिणी ल्होनक ग्लेसिअल झील फट गई थी.

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सिक्किम में सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित परियोजना है 1200 मेगावाट का प्रोजेक्ट तीस्ता III. ये प्रोजेक्ट 2 नदियों पर बना है, तीस्ता और लाचुंग. झील के पानी को चुंगथांग के महत्वपूर्ण चौराहे वाले शहर तक पहुंचने में देर नहीं लगी, जहां लाचेन नदी लाचुंग नदी से मिलती है.

2013 के उत्तराखंड जलप्रलय से भी बड़ी आपदा

तीस्ता III का बांध देखते देखते टूट गया. अपने जनरेटरों के लिए तीस्ता III 60 मीटर ऊंचे चट्टान से भरे कंक्रीट बांध का उपयोग करके पानी रखता है. 14,000 करोड़ रुपये से अधिक की राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा संपत्ति खत्म हो गई. और टूटे हुए बांध का पानी, मलबे के साथ तेज़ी से निचे बढ़ा.

सिक्किम, सौभाग्य से, एक कम आबादी वाला राज्य है इसलिए कम से कम लोगों के हताहत होने की उम्मीद की जा रही है. इसके बावजूद, 100 से भी अधिक लोग लापता हैं.

मलबे वाले पानी ने अपनी राह में आने वाले कई छोटे पुल तोड़ दिए. और इसके बाद सिक्किम के जीवन रेखा, NH10 को भी तोड़ दिया जो सिक्किम को पूरे देश से जोड़ती है.

यह 2013 के बाद से भारतीय हिमालय में आई सबसे बड़ी आपदा है. यह कहना गलत नहीं होगा कि यह 2013 की उत्तराखंड और 2023 हिमाचल प्रदेश आपदा से भी बड़ी है.

क्या है तीस्ता उर्जा योजना?

तीस्ता उर्जा, भारत में दूसरी सबसे बड़ी रन-ऑफ़-द-रिवर जल विद्युत परियोजना है. सिक्किम के उत्तर-पश्चिम में स्थित ल्होनक झील में मंगलवार की रात आई दरार के कारण आई बाढ़ की वजह से तीस्ता उर्जा में भरी क्षति हुई.

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तीस्ता नदी, देश की सबसे अधिक क्षतिग्रस्त नदियों में से एक है. देश में चल रही जलविद्युत परियोजनाओं में से सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक सिक्किम के तीस्ता नदी पर चल रही तीस्ता उर्जा योजना. यह योजना 1200 मेगावाट की बिजली की परियोजना है. और ये स्थित है उत्तरी सिक्किम में मंगन जिले में चुंगथांग और मंगन के बीचों बीच. इस योजना में करीब 15 बांधों पर काम चल रहा है और लगभग 4,200 मेगावाट की जल विद्युत क्षमता का दोहन करने के लिए नदी पर अन्य 28 बांध प्रस्तावित हैं.

रन ऑफ द रिवर परियोजनाएँ वे हैं जो ऐसी सुविधा प्रदान करती हैं जो बिजली पैदा करने के लिए टरबाइन को घुमाने के लिए नदी से पानी के प्रवाह को एक नहर या पेनस्टॉक के माध्यम से प्रसारित करती हैं.

सिक्किम ऊर्जा लिमिटेड (पूर्व में तीस्ता ऊर्जा लिमिटेड) के कार्यकारी अध्यक्ष सुनील सरावगी ने बताया कि पानी का वेग इतना था कि चुंगथांग का बांध केवल दस मिनट में बह गया. उन्होंने आगे बताया कि बाढ़ की जानकारी मंगलवार रात 11.58 बजे ITBP (भारतीय तिबत सीमा पुलिस) से मिली. और इसके बाद टीम गेट खोलने के लिए दौड़ी. लेकिन वो वहां तक पहुंच पाते उससे पहले ही बाढ़ ने उन पर हमला कर दिया और टीम अपनी जान बचा के किसी तरह बांध के दूसरी तरफ पहुंची. टीम में तकरीबन 12-13 लोग थे. बांध की दूसरी तरफ पहुंची हुई टीम को ITBP द्वारा बुधवार को 2 बजे निकला गया.

सुनील सरावगी ने बतया कि पावर हाउस को बांध से जोड़ने वाला 200 मीटर लंबा पुल भी बह गया. उन्होंने आगे कहा कि ‘पूरा बिजली घर पानी में डूबा हुआ है और नुकसान का आकलन करना जल्दबाजी होगी’.

परियोजना स्थल के दृश्यों से पता चलता है कि बांध की दीवार का बड़ा हिस्सा गायब है. सिक्किम आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, चुंगथांग बांध के ढहने से निचले इलाकों में जल स्तर में अचानक 15-20 फीट की वृद्धि हुई. बिजली परियोजना फरवरी 2017 में चालू हुई थी और 2022 में ही पानी के भारी प्रवाह के कारण क्षमता से अधिक बिजली पैदा करके इसने लाभ कमाना शुरू कर दिया था. इस परियोजना में सिक्किम सरकार की 60.08% हिस्सेदारी थी.

अगर आप एक क्लाइमेट एक्सपर्ट हैं तो आपको पता होगा की हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स का पहाड़ों पर क्या असर पड़ता है. आपको ये भी पता होगा की हिमालय में बांध बनाना एक बुरा विचार है और ग्लेशियर पिघल रहे हैं लेकिन ‘GLOF’ और अन्य विशिष्ट शब्दों से प्रभावित हो रहे हैं. सोचने की बात ये है कि सिक्किम में जो अक्टूबर 3-4 की रात को हुआ क्या वो प्राकृतिक आपदा थी या मानव निर्मित? सिक्किम में हुई घटना को इस घटना को ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) कहा जाता है जहां बांध के टूटे हुए जलाशय ने विशाल पत्थरों और कंक्रीट के टुकड़ों के घातक मलबे को अपने साथ ले जाते हुए नीचे की ओर बहने वाले पानी की मात्रा को बढ़ा दिया, और तीस्ता नदी के किनारों को नुकसान पहुंचाया.

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ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल जाता है और पीछे चला जाता है. यदि इसके नीचे कोई खड्ड या गहरी दरार है, तो पिघलता हुआ हिमनदी पानी एक झील का निर्माण करता है, जो एक तरफ ग्लेशियर से घिरी होती है और दूसरी तरफ उसकी चट्टानों का मलबा (जिसे मोराइन कहा जाता है) से घिरा होता है. जैसे-जैसे ग्लेशियर पिघलता है, झील का विस्तार होता है, और जल स्तर बढ़ता है, जिससे किसी भी समय किनारों के फटने का खतरा होता है.

क्या एक ऐसी आपदा इंतज़ार कर रहे है सबको पता था?

दुख की बात ये है कि आपदा घटित होने की प्रतीक्षा कर रही थी और विशेषज्ञों को इसके बारे में पता था.

हैदराबाद में नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने अधिकारियों को 2013 में सचेत किया कि सिक्किम की उपरी पहुंच में कुछ हिमनद झीलें आकार में बढ़ रही हैं, जिनमें दक्षिण लहोनक झील भी शामिल है. इसके बाद एक टीम भेजी गयी राज्य सरकार द्वारा जिसने बताया कि झील में पानी का प्रवाह वास्तव में बहिर्वाह से कहीं अधिक है. इसलिए, डिस्चार्ज को बढ़ाने के लिए कुछ आउटलेट बनाए गए.

सोनम वांगचुक की टीम को भेजा गया परिक्षण के लिए

एक और टीम ऊपर गयी 2016 में और फिर से झील से कम डिस्चार्ज की सूचना दी. तभी इंजीनियर और इनोवेटर सोनम वांगचुक को इसमें शामिल किया गया. वांगचुक, लेह-लद्दाख के एक प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने 3 इडियट्स में आमिर खान के चरित्र को प्रेरित किया था, उन्हें यह देखने के लिए सिक्किम लाया गया था कि क्या वह दक्षिण लहोनक झील की समस्या का समाधान कर सकते हैं. वांगचुक ने कई 150 मीटर लंबे पाइपों का उपयोग करने का निर्णय लिया जो झील से पानी खींचेंगे और स्तर को नियंत्रण में रखेंगे. इसे साइफ़ोनिंग प्रणाली कहा जाता है, वांगचुक इसके बारे में बेहद सकारात्मक थे.

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सात साल बाद, यानि, 2023 में सेटेलाइट के फोटोज से पता चला कि सिक्किम की उपरी पहुंच में 2 झीलें, दक्षिण ल्होनक और शाको चो, काफी विस्तारित हो गई थीं. वहां तैनात अधिकारीयों ने बताया कि शाको चो झील के लिए निगरानी प्रणाली ठीक काम कर रही है लेकिन दक्षिण लहोनक झील के लिए प्रणाली 15-18 सितंबर के आसपास स्थापित होने के कुछ ही दिनों बाद 21 सितंबर को विफल हो गई.

क्या इस आपदा को रोका जा सकता था?

चुंगथांग बांध तीस्ता III जलविद्युत परियोजना का हिस्सा है. ये प्रोजेक्ट 1200 मेगावाट बिजली बनाने में सक्षम है. इस योजना की शुरुआत में, यानि 2017 में पर्यावरण कार्यकर्ताओं की तीखी आपत्तियों का सामना करना पड़ा. परिवर्तन कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया कि तीस्ता पर जलविद्युत ऊर्जा प्रणाली तीस्ता नदी बेसिन के इकोसिस्टम को पूरी तरह से परेशान कर देगी, जो भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र से होकर गुजरती है

उन्ही पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि चुंगथांग या डाउनस्ट्रीम में बिजली संयंत्रों पर कोई बांध नहीं होता, तो दक्षिण ल्होनक झील में GLOF के पानी से तीस्ता नदी का पानी कुछ हद तक बढ़ सकता था. लेकिन इतने पानी के स्ट्रीम जुड़ने से लाखों क्यूसेक पानी फूट गया जिसे नदी संभाल नहीं सकी. और बांध कम से कम 100 साल तक चलने के लिए बनाया जाता है पर 14,000 करोड़ रुपये की कथित लागत से बना चुंगथांग बांध छह साल में ढह गया.