बिहार से जातीय सर्वे की उठी लहर के बाद आज पूरा देश भले जातीय सर्वे की बात करने लगा है, मगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जातीय सर्वे की स्थिति ‘आ बैल मुझे मार’ वाली हो गई है. जातीय सर्वे के बाद कई जातीय नेता उठ खड़े हुए कि ‘मेरी जाति को कमतर आंका गया है’.
बिहार में दलित राजनीति की आवाज भी उठने लगी है. वर्तमान सर्वे में बिहार की दलितों की संख्या लगभग 20 प्रतिशत आंकी गई है. इस सर्वे रिपोर्ट के आने के बाद दलित नेताओं ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग शुरू कर दी है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने सबसे पहले अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘हम ने तो पहले ही कहा था कि दलितों को आबादी के मुताबिक हिस्सेदारी नहीं मिल रही है.
तेली समाज का आंकड़ा गलत
जदयू सांसद सुनील कुमार पिंटू ने कहा कि ‘सरकार ने तेली समाज का गलत आंकड़ा जारी किया है. हम अलग से तेली समाज का गणना कराएंगे. हमारी आबादी 2.81 नहीं, बल्कि 5 प्रतिशत है बाकी फैसला मुख्यमंत्री लेंगे.
इसके बाद मुख्यमंत्री हमारी बात को नहीं मानते हैं तो तेली समाज की एक बड़ी बैठक होगी. उन्होंने कहा कि शिवहर में तो सभी 6 के 6 विधानसभा से तेली समाज के उम्मीदवार चुनाव जीत चुके हैं. इसके अलावा सीतामढ़ी, नवादा, गया, बेतिया में भी बड़ी आबादी है.
जातीय सर्वे के आंकड़ों से अति पिछड़ों में भी असंतोष
अति पिछड़ों की आबादी सबसे अधिक 36 प्रतिशत बताई गई है. मगर, उनके बीच से भी विरोध के स्वर उठ रहे हैं. जदयू के प्रदेश महासचिव प्रगति मेहता ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर धानुक जाति की आबादी की ठीक से गिनती न करने की शिकायत की है. गणना में इसकी आबादी दो लाख 85 हजार हजार बताई गई है.
सर्वे की विश्वसनीयता पर संदेह
पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जातीय सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सत्ता से जुड़ी चुनिंदा जातियों को छोड़ कर लगभग सभी जातियों के लोग ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा और जदयू के एक सांसद सहित अनेक लोग सर्वे के आंकड़ों को विश्वसनीय नहीं मान रहे हैं.
वैश्य, निषाद जैसी कुछ जातियों के आंकड़े 8-10 उपजातियों में तोड़ कर दिखाए गए. ताकि उन्हें अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास नहीं हो. वैश्य समाज की आबादी 9.5 फीसद से ज्यादा है, लेकिन ये सर्वे में दर्ज नहीं हुआ. जाति-धर्म के वे लोग वर्तमान सत्ता के साथ हैं, उनकी संख्या को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया और उपजातियों के आंकड़े कम दिखाए गए.
सर्वे में ग्वाला, अहीर, गोरा, घासी, मेहर , सदगोप जैसी दर्जन-भर यदुवंशी उपजातियों को एक जातीय कोड ‘यादव’ देकर इनकी आबादी 14.26 फीसद दिखाई गई. कुर्मी जाति की आबादी को भी घमैला, कुचैसा, अवधिया जैसी आधा दर्जन उपजातियों को जोड़ कर 2.87 फीसद दिखाया गया.
अगर उपजातियों को जोड़कर एक कोड दिया गया होता, तो बनिया की आबादी 9.56 प्रतिशत होती. मल्लाह जाति को 10 उपजातियों में तोड़ कर इनकी आबादी 2.60 फीसद दर्ज की गई. उपजातियों को जोड़ने पर मल्लाह जाति की आबादी 5.16 फीसद होती. नोनिया जाति की आबादी 1.9 प्रतिशत दर्ज हुई, जबकि इनकी बिंद, बेलदार उपजातियों को जोड़ कर आबादी 3.26 प्रतिशत होती है.
मांझी इतने नाराज हुए कि उन्होंने अपनी पार्टी हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (HAM) बना ली. नीतीश कुमार महागठबंधन के नेता के रूप में 2015 में बिहार के सीएम बने, लेकिन 2017 में एनडीए के साथ चले गए. जीतन राम मांझी ने महागठबंधन के साथ अपनी राजनीति का अगला अध्याय शुरू किया, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में उनका मन बदला और महागठबंधन छोड़ एनडीए के साथ आ गए.