कांग्रेस अब तक दो बड़ी विपक्षी बैठकें आयोजित करने में कामयाब रही है – एक बिहार में और दूसरी कर्नाटक में. 2023 में कांग्रेस लोकसभा चुनावों में लगातार दो बड़ी हार झेलने के बाद भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए से मुकाबला करने के लिए 26 विपक्षी दलों को एक साथ लेकर आई है.
इनमें वो दल शामिल हैं जिनका कुछ राज्यों में मजबूत आधार है जबकि अन्य दलों के पास राज्य विधानसभाओं या संसद में कोई विधायक या सांसद नहीं है. बिहार और कर्नाटक में दोनों विपक्षी बैठकों का हिस्सा रहे एक पार्टी नेता ने कहा कि 26 विपक्षी दलों को एक साथ लाना लोकतंत्र और संविधान को बचाना है जिस पर हमला हो रहा है.
छह प्रमुख राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र में बातचीत को संतुलित करने की जरूरत है. इन राज्यों से अधिकांश राज्यों में, विपक्षी दलों, विशेष रूप से क्षेत्रीय दलों की अपनी मजबूत उपस्थिति है, जहां कांग्रेस मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी में से एक है. उत्तर प्रदेश की तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (सपा) की 80 संसदीय सीटों वाले उत्तर प्रदेश में मजबूत उपस्थिति है.
सपा का 2019 में मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन था और वो पांच सीटें जीतने में सफल रही. अखिलेश यादव ने पिछले विधानसभा चुनाव से पहले बसपा का साथ छोड़कर जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) से हाथ मिला लिया जिसके पास लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है.
कांग्रेस लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल-यूनाइटेड जैसे मजबूत क्षेत्रीय दलों के साथ महागठबंधन का हिस्सा है.
कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य की 13 सीटों में से आठ सीटें जीतने में सफल रही थी जबकि भाजपा गठबंधन ने चार सीटों पर जीत हासिल की थी और एक सीट आप ने जीती थी. बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और दिल्ली में अपनी कुर्बानी के बदले कांग्रेस पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में अपने गठबंधन सहयोगियों से ज्यादा सीटों की मांग करेगी.