सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक और दुनिया को शौचालय का महत्व बताने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, बिन्देश्वर पाठक का मंगलवार को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. आरसी झा जो सुलभ इंटरनेशनल के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट हैं उन्होंने बिन्देश्वर झा के निधन की पुष्टि की. उन्होंने बताया की दिल्ली के AIIMS में 80 साल के बिन्देश्वर ने आखिरी सांस ली.
मानव अधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता, वेस्ट मैनेजमेंट और रिफार्म्स को बढ़ावा देने का कार्य बिन्देश्वर पाठक सुलभ इंटरनेशनल के जरिये किया करते थे. सुलभ इंटरनेशनल के लिए बिन्देश्वर पाठक को कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं.
कैसे बने बिंदेश्वर पाठक भारत के टॉयलेट मैन?
बिंदेश्वर पाठक ने एक इंटरव्यू में बताया की उनके घर में सब था, बस एक शौचालय नहीं था. उनके बचपन में महिलाएं करीब सुबह 4 बजे सौच के लिए बहार जाती थीं. जिनके घर में शौचालय था, उन्हें खुद का मैला ढोना होता था. नहीं तो, कथित अछूत वर्ग को करना होता था मैला ढोने का काम.
‘भारत के टॉयलेट मैन’ के तौर पर जाने वाले बिन्देश्वर पाठक को देश में सार्वजनिक सौचालय के प्रवर्तक के रूप में देखा जाता है. 1970 के दशक में पद्म भूषण से सम्मानित बिन्देश्वर पाठक ने सुलभ इंटरनेशनल की नींव राखी थी. उन्होंने इसके जरिये सभी सार्वजनिक जगहों पर सौचालय बनाये, जैसे बस अड्डा और रेलवे स्टेशन.
उन्होंने 1970 में खुले में सौच को रोकने के लिए यह स्थापना की और जल्द ही यह आन्दोलन बन गया. इसके लिए उन्हें अपने ससुर सहित कई लोगों के उपहास का भी सामना करना पड़ा था.
कई सम्मानों से नवाज़े गए
उन्हें कइ सम्मान मिले. बिन्देश्वर को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया 1991 में. उन्हें डॉ एपीजे अब्दुल कलम ने गुड कार्पोरेट सिटिजन अवार्ड से नवाज़ा. उन्हें गांधी शांति पुरस्कार और WHO वाला पब्लिक हेल्थ कैंपेन अवार्ड भी मिल चूका है.
सुलभ शौचालय के परिसरों के अच्छे प्रबंधन और उनकी स्वच्छता लोगों को पसंद आती हैं. स्नान सुविधा और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं भी कुछ परिसरों में उपलभ्ध हैं.