सुप्रीम कोर्ट (एससी) की पांच जजों की बेंच ने सोमवार को नरेंद्र मोदी सरकार के नवंबर 2016 के 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को 4:1 के बहुमत से बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि नोटबंदी पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई खामी नहीं है।

पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थे। इनमें से जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बाकी चार जजों की राय से अलग फैसला लिखा। उन्होंने कहा कि नोटबंदी का फैसला गैरकानूनी था। इसे गजट नोटिफिकेशन की जगह कानून के जरिए लिया जाना था। हालांकि उन्होंने कहा कि इसका सरकार के पुराने फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट में 58 याचिकाओं के जरिए नोटबंदी के फैसले में कमियां गिनाई गई थीं. जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने 7 दिसंबर को मामले पर सुनवाई पूरी की थी. सोमवार को जस्टिस बी आर. गवई ने बहुमत का फैसला पढ़ा.नागरत्ना ने अलग फैसला पढ़ा. इसमें उन्होंने माना कि RBI एक्ट की धारा 26(2) का पूरी तरह पालन किए बिना नोटबंदी लागू की गई. हालांकि, अल्पमत के इस फैसले का कोई व्यवहारिक असर नहीं होगा.

पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि 8 नवंबर, 2016 के नोटिफिकेशन में कोई त्रुटि नहीं मिली है और सभी सीरीज के नोट वापस लिए जा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी का फैसला लेते समय अपनाई गई प्रक्रिया में कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस अधिसूचना को रद्द करने की कोई जरूरत नहीं है. कोर्ट ने ये भी कहा कि RBI को स्वतंत्र शक्ति नहीं कि वह बंद किए गए नोट को वापस लेने की तारीख बदल दे. वहीं कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार RBI की सिफारिश पर ही इस तरह का निर्णय ले सकती है.’निर्णय प्रक्रिया को गलत नहीं कहा जा सकता’फैसले में ये भी कहा गया कि कोर्ट आर्थिक नीति पर बहुत सीमित दखल दे सकता है. जजों ने कहा कि केंद्र और आरबीआई के बीच (नोटबंदी पर) 6 महीने तक चर्चा की गई थी, इसलिए निर्णय प्रक्रिया को गलत नहीं का जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “जहां तक लोगों को हुई दिक्कत का सवाल है, यहां यह देखने की जरूरत है कि उठाए गए कदम का उद्देश्य क्या था.”