आज हम बात करेंगे देश की राजनीति में विपक्षी दलों के लिए इस वक्त चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। राहुल गांधी के लगातार दिए जा रहे विवादित बयानों ने कांग्रेस की छवि को नुकसान पहुंचाया है, तो वहीं पश्चिम बंगाल की ममता सरकार बांग्लादेशी घुसपैठ के आरोपों के घेरे में फंसी हुई है। इन दोनों घटनाओं ने विपक्ष की कमजोरी को और उजागर कर दिया है। आज हम इन मुद्दों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

राहुल गांधी की राजनीतिक बयानबाजी ने कांग्रेस के लिए नई मुसीबतें खड़ी कर दी हैं। बिहार चुनाव से पहले जहां वे ईवीएम पर सवाल उठाते थे, अब उन्होंने चुनाव आयोग को ही निशाने पर लिया है। उनका बयान, जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र चुनाव को “लोकतंत्र की हत्या” और “मैच फिक्सिंग” बताया, ने विपक्षी दलों के बीच भी खामोशी पैदा कर दी है। अब न तो कोई उनका समर्थन कर रहा है और न ही कांग्रेस के अंदर से कोई उनकी बातों का बचाव कर रहा है। इस बयान के बाद कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति पर सवाल उठने लगे हैं।

वहीं, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार भी संकट में है। विधानसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर प्रस्ताव लाने की तैयारी चल रही है, हालांकि इस प्रस्ताव में सीधे तौर पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम नहीं लिया जाएगा। इसके अलावा, काकद्वीप विधानसभा क्षेत्र से एक बड़ा मामला सामने आया है। वहां के एक व्यक्ति न्यूटन दास, जो बांग्लादेश के 2024 के छात्र आंदोलन से जुड़ा था, उसका नाम बांग्लादेश की वोटर लिस्ट में पाया गया है। सोशल मीडिया पर उसकी तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जिसमें वह प्रदर्शन करता दिख रहा है। इस घटना ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है और ममता सरकार पर घुसपैठियों को संरक्षण देने के आरोप लग रहे हैं।

इन सबके बीच राहुल गांधी के बयानों से गठबंधन दल भी असहज नजर आ रहे हैं, तो ममता बनर्जी की सरकार पर भी राष्ट्रविरोधी ताकतों से संबंध रखने के आरोप लग रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी विभिन्न विवादों में फंसे हुए हैं। ऐसे में विपक्ष की राजनीतिक तस्वीर बेहद जटिल हो गई है। जनता की नजर में विपक्ष की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।