उत्तर प्रदेश की सियासत में बसपा प्रमुख मायावती को एक के बाद एक मिलती चुनावी मात और चुनाव दर चुनाव बसपा के खिसकता जनाधार से पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं के विश्वास डगमगाने लगे हैं. सूबे की राजनीतिक बिसात पर मायावती अलग-थलग पड़ गई हैं, जिसके चलते दलित समुदाय के 22 फीसदी वोट बैंक पर विपक्षी दलों की निगाहें लगी हुई हैं. बीजेपी, सपा, आरएलडी, कांग्रेस और चंद्रशेखर आजाद तक दलित समुदाय का दिल जीतने की कोशिश में जुटे हैं.

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दरअसल उत्तर प्रदेश की सियासत में 2012 के बाद से बसपा का ग्राफ नीचे गिरना शुरू हुआ तो 2022 के चुनाव में उसने सबसे निराशाजनक प्रदर्शन किया. यूपी में बसपा का आधार गिरकर 13 फीसदी पर पहुंच गया है. पार्टी के पास महज एक विधायक है और 2019 में जीते सांसदों का भी मोहभंग हो रहा है.

दलित वोटों पर चंद्रशेखर की नजर

मायावती के दलित कोर वोट बैंक पर भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद की नजर है. यूपी का 22 फीसदी दलित समाज दो हिस्सों में बंटा है. एक, जाटव जिनकी आबादी करीब 12 फीसदी है और दूसरा 10 फीसदी गैर-जाटव दलित हैं. मायावती जाटव समुदाय से आती हैं. चंद्रशेखर आजाद भी जाटव हैं और मायावती की तरह पश्चिम यूपी से आते हैं. जाटव वोट बसपा का हार्डकोर वोटर माना जाता है, जिसे चंद्रशेखर साधने में जुटे हैं. बसपा के संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस 9 अक्टूबर को चंद्रशेखर आजाद नगीना क्षेत्र से मिशन-2024 का आगाज करेंगे.

इस तरह कांशीराम की सियासी विरासत के सहारे दलितों के दिल में जगह बनाने और बसपा की सियासी जमीन को हथियाने का चंद्रशेखर ने प्लान बनाया है. चंद्रशेखर कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर रैली 2024 के चुनावी अभियान का आगाज करने के पीछे उनकी सोची-समझी रणीनीति है. कांशीराम का परिनिर्वाण दिवस और उनकी जयंती पर बसपा बड़ा कार्यक्रम करती है.

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बसपा के वोटों पर कांग्रेस का फोकस

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने पुराने दलित वोट बैंक को फिर से जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है. कांग्रेस कांशीराम की पुण्यतिथि पर नौ अक्तूबर से दलित गौरव संवाद कार्यक्रम शुरू कर रही है. इसके जरिए दलितों के बीच जनजागरण करेगी, उनकी बातों को सुनने के साथ ही एक लाख दलित अधिकार पत्र भी भरवाएगी. कांशीराम को श्रद्धांजलि देने के साथ ही उनके संदेशों का प्रचार करेगी.

उसी दिन से दलित गौरव संवाद कार्यक्रम भी शुरू करेगी और ये संविधान दिवस यानी 26 नवंबर तक चलेगा. कांग्रेस इस अभियान के जरिए दलित समुदाय के डॉक्टरों, इंजीनियरों, शिक्षकों के साथ ही बाकी प्रबुद्ध वर्ग के बीच अपनी पैठ जमाने की है. कांग्रेस प्रदेश संगठन मंत्री अनिल यादव का कहना हैं कि जिस दिन दलित कांग्रेस के साथ पूरी तरह से आ गया, उसी दिन बीजेपी केंद्र और राज्य की सत्ता से बाहर हो जाएगी.

बहुजन की राह पर सपा

सपा भी अब यादव-मुस्लिम के साथ-साथ दलित और अति पिछड़े वर्ग के जोड़ने के मिशन पर जुटी है. अखिलेश यादव कह चुके हैं कि सपा लोहिया के साथ अंबेडकर और कांशीराम के विचारों को लेकर चलेगी. सपा की नजर पूरी तरह से दलित वोटों पर है, जिसके लिए उन्होंने कांशीराम की प्रयोगशाला से निकले हुए तमाम बसपा नेताओं को अपने साथ मिलाया है और उनके जरिए दलितों के विश्वास जीतने की कोशिश कर रहे हैं.

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अंबेडकर वाहिनी बनाई तो साथ ही कांशीराम की मूर्ती का भी अनावरण किया. इतना ही नहीं साफ-साफ कहते हैं कि लोहियावादी और अंबेडकरवादी एक साथ आ जाते हैं तो फिर उन्हें कोई हरा नहीं सकता है सपा के कई दलित नेताओं को आगे बढ़ाने में जुटी है, जिसके जरिए 22 फीसदी वोटों को अपने साथ जोड़ने का प्लान है.

बीजेपी का दलित मिशन

बीजेपी गैर-जाटव दलितों को अपने साथ जोड़ने में काफी हद तक सफल हो चुकी है और अब उसकी नजर जाटव वोटों पर है. बसपा लगातार दलित समुदाय के बीच अपनी पैठ जमाने की कोशिशों में जुटी है. केंद्र और राज्य की योजनाओं के जरिए दलित समुदाय के बीच बीजेपी ने एक बड़ा वोट बैंक तैयार कर लिया है.

इतना ही नहीं संघ पर सामाजिक समरसता के जरिए दलित समुदाय के विश्वास को जीतने की कोशिश कर रही है, जिसके लिए गांव-गांव अभियान भी चला रही है. बीजेपी ने दलित समुदाय के अलग-अलग जातियों को सरकार और संगठन में जगह देकर भी उन्हें सियासी संदेश देने की कोशिश कर रही है.