भारत आज केवल सीमाओं की सुरक्षा नहीं कर रहा, बल्कि एक व्यापक रणनीति के जरिए उन देशों को भी बेनकाब कर रहा है जो उसके खिलाफ गुपचुप साजिशें रच रहे हैं। पाकिस्तान और चीन की भूमिका पहले से स्पष्ट रही है, लेकिन अब तुर्की और अज़रबैजान जैसे देशों ने भी भारत की पीठ में छुरा घोंपने की कोशिश की है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने इन देशों की गतिविधियों का गहराई से मूल्यांकन किया और अब कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य स्तर पर जवाब देने की दिशा में निर्णायक कदम उठाए हैं।

2021 में बाकू में हुए शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान, तुर्की और अजरबैजान ने ‘थ्री ब्रदर्स एलायंस’ की घोषणा की थी। यह गठबंधन ना केवल सैन्य सहयोग पर आधारित है, बल्कि इन देशों ने विवादित मुद्दों पर भी एक-दूसरे का खुलकर समर्थन किया। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तुर्की और अज़रबैजान ने पाकिस्तान के पक्ष में सार्वजनिक रूप से बयान दिए, और कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग का समर्थन किया। तुर्की ने तो पाकिस्तान को सैन्य सामग्री भेजकर भारत विरोधी मंशा भी जाहिर कर दी। अजरबैजान ने भी इसी लाइन पर चलते हुए पाकिस्तान की संप्रभुता और उसकी कश्मीर नीति को समर्थन दिया।

तुर्की की चाल और भारत का जवाब

एर्दोगन इस्लामी दुनिया में नेतृत्व की भूमिका निभाना चाहते हैं, लेकिन भारत के खिलाफ उनकी साजिशें उन्हें लगातार असफल बना रही हैं। भारत ने तुर्की की इस भूमिका का जवाब उसके विरोधी ग्रीस और साइप्रस के साथ संबंध मज़बूत करके दिया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर की पहल पर भारत ने साइप्रस पर तुर्की के अवैध कब्जे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया और तुर्की के साथ व्यावसायिक और रणनीतिक संबंधों को सीमित किया है।

अज़रबैजान के खिलाफ रणनीतिक सहयोग

भारत ने अज़रबैजान के विरोधी देश आर्मेनिया को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति कर उसकी रणनीति को मात दी है। 2022 की डील के तहत भारत ने आर्मेनिया को मिसाइल इंटरसेप्टर, एंटी-ड्रोन सिस्टम और आधुनिक हॉवित्ज़र जैसे हथियार दिए हैं। यह डील अज़रबैजान को इतना असहज कर गई कि उसने भारत के प्रति आक्रामकता और बढ़ा दी। लेकिन भारत की यह रणनीति कारगर रही है, क्योंकि अब अज़रबैजान को आर्मेनिया से मोर्चा लेना पड़ रहा है, जिससे वह भारत के खिलाफ अपनी ऊर्जा केंद्रित नहीं कर पा रहा।

चीन पर भी भारत ने सीधा लेकिन गहरा हमला किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालिया जनसभा में आत्मनिर्भर भारत अभियान को ज़ोर देते हुए चीन के सस्ते माल के बहिष्कार की अपील की। उन्होंने विदेशी मूर्तियों और सजावटी सामानों के उपयोग को लेकर सवाल उठाए और स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करने की बात कही। इससे यह साफ हो गया कि भारत केवल सैन्य स्तर पर नहीं, बल्कि आर्थिक स्तर पर भी चीन जैसे देशों पर दबाव बनाने की नीति पर काम कर रहा है।