अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम (IEEPA) के तहत लगाए गए आक्रामक आयात शुल्कों की वैधता पर सवाल उठ रहे हैं। चीन, यूरोप, भारत और अन्य देशों पर लगाए गए ये शुल्क अमेरिकी संविधान के तहत कांग्रेस के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन माने जा रहे हैं। अमेरिकी अपीलीय अदालतों, विशेष रूप से डी.सी. सर्किट में, इन टैरिफों को चुनौती देने वाले मुकदमों ने गति पकड़ ली है, और मामला जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच सकता है।
ट्रम्प ने राष्ट्रीय आपातकाल का हवाला देते हुए एकतरफा रूप से ये शुल्क लागू किए, जिससे आयातकों और व्यापारिक समूहों में नाराजगी फैल गई। सबसे प्रमुख मामला, वी.ओ.एस. सिलेक्शन्स बनाम ट्रम्प, अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार न्यायालय में दायर किया गया, जहां शुल्कों को असंवैधानिक घोषित किया गया। हालांकि, अगले ही दिन संघीय सर्किट अपीलीय न्यायालय ने अस्थायी प्रशासनिक रोक लगा दी, जिससे जुलाई 2025 में होने वाली मौखिक बहस तक शुल्क प्रभावी रहे।
डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ कोलंबिया के ज़िला न्यायालय में दायर लर्निंग रिसोर्सेज़ बनाम ट्रम्प जैसे समानांतर मामले भी ट्रम्प के टैरिफ अधिकार को चुनौती दे रहे हैं। ओरेगन, कैलिफ़ोर्निया, फ़्लोरिडा और मोंटाना जैसे राज्यों ने भी कानूनी कार्रवाई शुरू की है। कई मामलों को एकीकृत कर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार न्यायालय में सुनवाई के लिए तैयार किया जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन मुकदमों का परिणाम अमेरिकी व्यापार नीति और कार्यकारी शक्ति की सीमाओं को फिर से परिभाषित कर सकता है।
फिलहाल, अपीलीय न्यायालयों के अस्थायी स्थगन के कारण शुल्क लागू हैं, जिससे आयातकों और उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। व्यापार विश्लेषक जॉन स्मिथ के अनुसार, “ये शुल्क वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर रहे हैं, और यदि इन्हें रद्द किया गया, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं को राहत मिल सकती है।”
यदि सर्वोच्च न्यायालय निचली अदालतों के फैसले को बरकरार रखता है, तो ट्रम्प को अरबों डॉलर के शुल्क वापस करने पड़ सकते हैं। यह मामला न केवल व्यापार नीति, बल्कि राष्ट्रीय आपातकाल के दुरुपयोग पर भी सवाल उठाता है। आने वाले महीनों में होने वाली सुनवाई इस विवाद के भविष्य को तय करेगी।