अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि संभावित शांति समझौते के तहत रूस और यूक्रेन को एक-दूसरे के साथ ज़मीन की अदला-बदली करनी होगी। उनका कहना है कि रूस ने “बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र” पर कब्ज़ा किया है, जिसमें से कुछ हिस्से को यूक्रेन को वापस दिलाने की कोशिश की जाएगी। वर्तमान में रूस के पास यूक्रेन का लगभग 20% भूभाग है, जबकि यूक्रेन के पास रूस की कोई महत्वपूर्ण भूमि नहीं है।
मास्को डोनेट्स्क और लुगांस्क पर अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहता है, जो कोयला, भारी उद्योग और बुनियादी ढांचे से समृद्ध हैं और 2014 से संघर्ष का केंद्र रहे हैं। इसके साथ ही, रूस युद्धविराम समझौते की एक अहम शर्त के रूप में यूक्रेन के नाटो में शामिल होने का विरोध कर रहा है। ब्रिटिश दैनिक द टेलीग्राफ के अनुसार, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने संकेत दिया है कि वे केवल नाटो सदस्यता और सुरक्षा की गारंटी मिलने पर ही क्षेत्र छोड़ने के लिए तैयार होंगे।
इस बीच, ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जिसे लेकर अमेरिकी कूटनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। ट्रंप ने इस फैसले का कारण भारत द्वारा रूस से तेल खरीद को बताया है। पूर्व अमेरिकी उप-विदेश मंत्री कर्ट कैंपबेल ने सीएनबीसी इंटरनेशनल से बातचीत में कहा, “21वीं सदी में अमेरिका का सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता भारत के साथ है, और यह अब खतरे में है।” उन्होंने कहा कि ट्रंप की हालिया टिप्पणियों से भारत सरकार मुश्किल स्थिति में है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इन मांगों के आगे झुकना नहीं चाहिए।
पूर्व पेंटागन अधिकारी माइकल रुबिन ने भी ट्रंप के रुख की आलोचना की। उन्होंने कहा, “डोनाल्ड ट्रंप भारत को निशाना बनाकर गलत कर रहे हैं। भारत को अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहिए… प्रधानमंत्री मोदी का यह रुख इतिहास में दर्ज होगा, जहां अमेरिका को सीख मिलेगी कि भारत को आप अनदेखा नहीं कर सकते।” रुबिन का मानना है कि मौजूदा तनाव खत्म होने के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में उल्लेखनीय सुधार संभव है।
रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत-अमेरिका व्यापार विवाद के इन समानांतर घटनाक्रमों से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं। जहां एक ओर यूरोप में शांति समझौते की संभावनाओं पर चर्चा जारी है, वहीं भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव आने वाले महीनों में कूटनीतिक एजेंडे का अहम हिस्सा बन सकता है।