जब देश मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने पर उपलब्धियों का जश्न मना रहा है, तब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव एक अलग ही सुर में नज़र आ रहे हैं। उन्होंने केंद्र और उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकारों पर तीखा हमला करते हुए बीते 20 वर्षों का हिसाब मांगा है। उनकी नाराज़गी और बयानबाज़ी इस वक्त में कुछ और ही संकेत देती है—शायद बढ़ती राजनीतिक चुनौती और सियासी असहजता का इज़हार।
अखिलेश यादव ने कहा कि केंद्र में 11 साल और उत्तर प्रदेश में 9 साल की बीजेपी सरकार ने 20 साल में क्या किया, इसका जवाब जनता को मिलना चाहिए। उन्होंने बेरोजगारी, शिक्षा, निवेश की स्थिति, किसानों की समस्याएं और पुलिस पर लग रहे आरोपों को लेकर योगी सरकार को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि “एक पे एक ग्यारह” और “नौ दो ग्यारह” जैसी कहावतों से इस शासनकाल का सार समझा जा सकता है।
विकास बनाम विरोध
जब सरकार का दावा है कि गांव-गांव में बिजली पहुंची है, करोड़ों घरों में शौचालय और पीने का पानी मिला है, किसान सम्मान निधि से सीधे खाते में पैसे जा रहे हैं और गरीबों को मुफ्त राशन व इलाज मिल रहा है—तो ऐसे में विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया हैरान करती है। सवाल उठता है कि अगर ज़मीनी बदलाव दिख रहे हैं, तो अखिलेश यादव को मिर्ची क्यों लग रही है?
बीते शासन की यादें
अखिलेश यादव की सरकार के वक्त की याद करें, तो सैफई महोत्सव सुर्खियों में रहता था, और राज्य में दंगों की घटनाएं आम थीं। उस दौर की तुलना में आज उत्तर प्रदेश निवेश का बड़ा केंद्र बन चुका है, जहां ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट जैसे आयोजन हो रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक प्रतिक्रिया को जनभावनाओं से जोड़ना मुश्किल होता जा रहा है।
राजनीति में आलोचना जरूरी है, लेकिन सवाल तब उठते हैं जब आलोचना केवल सत्ता विरोध के लिए की जाए, न कि ठोस तथ्यों के आधार पर। अखिलेश यादव की बेचैनी शायद आगामी चुनावी चुनौतियों का संकेत है।