ईरान, इज़राइल और अमेरिका के बीच बढ़ते संघर्ष के बीच पाकिस्तान एक बार फिर विवादों में घिरता नजर आ रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिकी हमले में पाकिस्तान ने चुपचाप अपनी हवाई सीमा (एयरस्पेस) का इस्तेमाल करने की इजाज़त दी थी। दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान और अमेरिका के बीच एक गुप्त डील हुई थी, जिसके तहत अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले के लिए पाकिस्तानी एयरस्पेस का इस्तेमाल किया। अब यह बात सामने आने के बाद ईरानी मीडिया में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर की इस रणनीति पर न केवल सवाल उठ रहे हैं, बल्कि यह आशंका भी गहराने लगी है कि कहीं पाकिस्तान अब ईरान के निशाने पर तो नहीं आ गया है।

पाक-अमेरिका डील और ईरान में गुस्सा

22 जून को अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमला किया। यह हमला ऐसे समय में हुआ जब पहले से ही ईरान और इज़राइल के बीच टकराव अपने चरम पर था। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इन ऑपरेशनों में अमेरिका को पाकिस्तान की हवाई सीमा के इस्तेमाल की छूट मिली थी। ईरानी मीडिया में अब खुलकर यह कहा जा रहा है कि पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ मिलकर ईरान के खिलाफ एक “टार्गेटेड ऑपरेशन” में मदद की।

यह पूरी डील बेहद गोपनीय तरीके से की गई थी और इसका नेतृत्व कर रहे थे पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर। माना जा रहा है कि मुनीर ने अमेरिका से एक रणनीतिक समझौता किया, जिससे पाकिस्तान को राजनीतिक फायदा तो मिल सकता था, लेकिन अब वह उल्टा पड़ता नजर आ रहा है। ईरान इस डील को अपनी संप्रभुता पर हमला मान रहा है और दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों में खटास आना तय माना जा रहा है।

क्या पाकिस्तान अब ईरान के निशाने पर है?

इस खुलासे के बाद पाकिस्तान की स्थिति बेहद असहज हो गई है। पहले ही आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नया दबाव पैदा कर सकता है। सोशल मीडिया से लेकर राजनयिक गलियारों तक, यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या पाकिस्तान ने अपने क्षेत्र का उपयोग करके ईरान के खिलाफ ग़लत कदम उठाया? और अगर हां, तो क्या ईरान अब इसका बदला लेने की दिशा में आगे बढ़ सकता है?

इस पूरे घटनाक्रम में जनरल असीम मुनीर की भूमिका सबसे अधिक चर्चा में है। जिस तरह उन्होंने पर्दे के पीछे रहते हुए एक बड़ी रणनीति अपनाई, वह अब सवालों के घेरे में है। पाकिस्तान के लिए यह मामला न सिर्फ ईरान के साथ रिश्तों पर असर डालेगा, बल्कि इससे क्षेत्रीय संतुलन भी गड़बड़ा सकता है।