पाकिस्तान एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति की चालों में उलझता नजर आ रहा है। अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के बीच राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अचानक ईरानी ठिकानों पर हमले ने इस्लामाबाद को गहरी मुश्किल में डाल दिया है। खास बात यह है कि कुछ ही दिन पहले पाकिस्तान ने ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की सिफारिश की थी। अब वही ट्रंप ईरान पर बमबारी कर रहे हैं, जिससे पाकिस्तान की साख को गहरा झटका लगा है। सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की इस फैसले को लेकर पाकिस्तान की जनता खुलकर आलोचना कर रही है।

ट्रंप की अनपेक्षित कार्रवाई ने खोली पोल

जनरल मुनीर ने हाल ही में ट्रंप से करीबी बढ़ाने की कोशिश की थी। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान सरकार ने उनकी सिफारिश पर ही ट्रंप का नाम शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए आगे बढ़ाया। लेकिन जैसे ही ट्रंप ने ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू की, पाकिस्तान की जनता भड़क उठी। कराची, पेशावर और इस्लामाबाद समेत कई शहरों में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। लोग सवाल उठा रहे हैं कि कैसे एक मुस्लिम देश, जो खुद को ग़ाज़ा और ईरान के समर्थन में दिखाता है, उसी ट्रंप को शांति का प्रतीक बताने लगा जिसने मुस्लिम देशों पर हमले तेज कर दिए हैं।

मुनीर और शहबाज सरकार की साख पर सवाल

इस पूरे घटनाक्रम ने जनरल मुनीर और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पाकिस्तान की जनता अब उन्हें ट्रंप की ‘चाल’ में फंसा हुआ बता रही है। सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक यह नारा गूंज रहा है – “मुनीर गद्दार निकला तू”। जनता का गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि ट्रंप को शांति का दूत बताकर पाकिस्तान ने न केवल अपनी विदेश नीति को मज़ाक बना दिया, बल्कि मुस्लिम दुनिया में भी खुद को अलग-थलग कर लिया है।

अब जब ट्रंप की असल नीयत सामने आ चुकी है, तो पाकिस्तान सरकार दबाव में आकर उनके खिलाफ बयानबाज़ी करने को मजबूर हो गई है। लेकिन सवाल यही है कि क्या सरकार अब अपनी सिफारिश को वापस लेगी? और क्या जनरल मुनीर को इस भूल की बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी?