पाकिस्तान इस बार बकरीद के मौके पर एक नई परेशानी से जूझ रहा है—यह कोई धार्मिक या पारंपरिक विवाद नहीं, बल्कि उसके अपने ही पाले गए आतंकी अब गले की फांस बनते दिख रहे हैं। पीओके और बलूचिस्तान जैसे इलाकों में लोग खुलेआम आतंकियों का विरोध कर रहे हैं। हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे नाम अब लोगों के गुस्से का केंद्र बन चुके हैं, और पाकिस्तान सरकार को उन्हें छिपाने तक की नौबत आ गई है। सवाल अब सिर्फ यह नहीं है कि ये आतंकी कहां हैं, बल्कि यह भी है कि अब पाकिस्तान में उन्हें कौन बचाएगा?

बकरीद पर पहली बार पीओके की सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए 66 आतंकी संगठनों की सूची जारी की, जिन्हें किसी भी तरह की वित्तीय या पशु सहायता देने पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया गया। इसमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन शामिल हैं। आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि अगर किसी ने चंदा या जानवर दिए, तो उसे एक साल की जेल हो सकती है। यह फैसला बताता है कि अब पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र में भी आतंक के खिलाफ जनमत तैयार हो रहा है।

बलूचिस्तान से उठी आज़ादी की मांग

बलूचिस्तान में लंबे समय से पाकिस्तान सरकार के खिलाफ असंतोष पनपता रहा है। बलूच विद्रोही लगातार पाकिस्तानी सेना को निशाना बना रहे हैं। हाल ही में बलूच लिबरेशन आर्मी ने क्वेटा और जमुरान में हमले कर 5 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। बलूच नेता यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उनकी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक उन्हें आज़ादी नहीं मिलती और पाकिस्तानी सेना उनके क्षेत्र से नहीं हटती।

पीओके में भी फूटा गुस्सा

पीओके में भी हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। आम लोग अब खुलकर पाकिस्तान सरकार और सेना के अत्याचारों के खिलाफ सड़क पर उतर रहे हैं। लोगों का आरोप है कि उनके संसाधनों का शोषण किया जा रहा है और विकास के नाम पर कुछ नहीं हो रहा। नीलम-झेलम जैसी परियोजनाओं से मिलने वाली बिजली में भी उन्हें कोई हिस्सा नहीं दिया जाता। अब विरोध इस हद तक पहुंच गया है कि हाफिज और मसूद जैसे आतंकियों के खिलाफ सार्वजनिक प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं।

पाकिस्तान अब न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय दबाव में है, बल्कि अंदरूनी विद्रोह से भी घिर गया है। शहबाज शरीफ की सरकार इन विरोधों को दबाने की कोशिश कर रही है, लेकिन अब न पीओके की आवाज रुक रही है और न ही बलूचों का विद्रोह।