मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हुए ऐसा विधेयक पेश किया है, जिसने विपक्षी दलों में खलबली मचा दी है। इस प्रस्तावित संविधान संशोधन के तहत यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में 30 दिन जेल में रहता है, तो 31वें दिन उसका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा। सरकार का दावा है कि यह कदम राजनीति से भ्रष्टाचार खत्म करने की दिशा में ऐतिहासिक साबित होगा, लेकिन विपक्षी दलों की एकजुटता इस मुद्दे पर टूटती नज़र आ रही है।
विपक्षी एकता पर सवाल
इस बिल के खिलाफ संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की मांग को लेकर विपक्ष पहले से सक्रिय था। हालांकि, अब तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), समाजवादी पार्टी (सपा) और आम आदमी पार्टी (आप) ने जेपीसी में शामिल न होने का ऐलान कर दिया है। इन दलों ने जेपीसी को “तमाशा” बताते हुए कांग्रेस से दूरी बना ली है। विपक्ष की इन तीन बड़ी पार्टियों के फैसले के बाद कांग्रेस पर जेपीसी बहिष्कार का दबाव बढ़ गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस के लिए यह स्थिति असहज है। विपक्ष की एकता बनाए रखने के लिए पार्टी पर रुख बदलने का दबाव है, लेकिन आंतरिक तौर पर पार्टी नेतृत्व अभी अंतिम फैसला नहीं ले पाया है। कांग्रेस के कई नेता मानते हैं कि अगर पार्टी जेपीसी बहिष्कार से जुड़ती है, तो विपक्ष की एकजुटता का संदेश जाएगा, जबकि अलग राह चुनने पर वह अकेली पड़ सकती है।
टीएमसी का जेपीसी से किनारा करना पहले से अपेक्षित था, लेकिन सपा और आप के रुख ने विपक्षी खेमे में हलचल बढ़ा दी है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी सरकार का यह कदम विपक्ष को रणनीतिक रूप से उलझाने में सफल रहा है। वहीं, सरकार के समर्थक इसे भ्रष्टाचार पर नकेल कसने वाला ठोस कदम बता रहे हैं।
अब निगाहें कांग्रेस के फैसले पर टिकी हैं। पार्टी का अंतिम रुख ही तय करेगा कि विपक्ष एकजुट रह पाएगा या मोदी सरकार का बिल विपक्ष को और ज्यादा बिखेर देगा। आने वाले दिनों में कांग्रेस के रुख से इस राजनीतिक टकराव की अगली दिशा साफ होगी।