प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G-7 समिट के समापन के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से फोन पर बातचीत की। इस दौरान पीएम मोदी ने हाल ही में पाकिस्तान के खिलाफ किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर विस्तार से चर्चा की। विदेश सचिव विक्रम मिसरी का मीडिया में बयान सामने आया जिसमें उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं के बीच करीब 35 मिनट तक बातचीत हुई। इस बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने स्पष्ट कहा कि भारत ने ना कभी भारत-पाकिस्तान मुद्दे पर किसी मध्यस्थता को स्वीकार किया है, ना करता है और ना ही भविष्य में कभी करेगा।

लेकिन इसी बयान के बाद देश की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने मोदी सरकार पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यह बात छुपाई जा रही है कि इस ऑपरेशन को लेकर अंतरराष्ट्रीय समर्थन कितना मिला। वहीं तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने मल्टी पार्टी डेलिगेशन की कामयाबी पर सवाल उठाते हुए कहा कि 33 देशों के दौरे पर गए प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों से पूछा जाना चाहिए कि कितने देशों ने पाकिस्तान के मुद्दे पर भारत का समर्थन किया।

कूटनीति बनाम वोट बैंक की राजनीति

विपक्ष के इन आरोपों का सीधा संकेत इस बात की ओर है कि क्या वास्तव में भारत को इस ऑपरेशन में वैश्विक समर्थन मिला या नहीं। कांग्रेस और टीएमसी का यह भी आरोप है कि भारत की कूटनीति ने इस मुद्दे पर कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं की। उनके अनुसार भारत की विदेश नीति सिर्फ प्रचार तक सीमित है और पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को अपेक्षित समर्थन नहीं मिल पाया।

विपक्ष के सवाल या पाकिस्तान की मदद?

यह कोई पहली बार नहीं है जब विपक्ष खासकर कांग्रेस ने भारत की विदेश नीति पर हंगामा किया हो। वहीं अभिषेक बनर्जी के बयान को मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति से जोड़ते हुए कहा गया कि इन नेताओं की आदत बन गई है कि वे मोदी और देश विरोध में ऐसे बयान देकर पाकिस्तान के हाथ मजबूत करते हैं।