मिडिल ईस्ट में जिस खतरनाक टकराव की आशंका लंबे समय से जताई जा रही थी, वो अब हकीकत बन चुकी है। इजरायल और ईरान के बीच तनाव ने अब जंग का रूप ले लिया है। 13 जून की सुबह इजरायल ने ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर बड़े स्तर पर हवाई हमला किया। जवाब में ईरान ने भी ड्रोन से हमला करने की कोशिश की, लेकिन उसे नाकाम कर दिया गया। दोनों देशों के बीच इस संघर्ष का असर न सिर्फ क्षेत्रीय शांति पर पड़ा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चिंताएं गहराती जा रही हैं।

इजरायल की ओर से किए गए इस हमले में 300 से ज्यादा एयरस्ट्राइक की गईं, जिनमें ईरान के सैन्य प्रतिष्ठानों और न्यूक्लियर साइट्स को टारगेट किया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन हमलों में ईरान के आर्मी चीफ, आईआरजीसी प्रमुख और शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक मारे गए हैं। हमले के बाद तेहरान में खलबली मच गई और देशभर में इमरजेंसी घोषित कर दी गई। राजधानी का एयरस्पेस तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है।

ईरान का जवाबी हमला और वैश्विक चिंता

ईरान ने भी तुरंत पलटवार करते हुए 100 ड्रोन इजरायल पर छोड़े, लेकिन इजरायली सुरक्षा बलों ने इसे विफल कर दिया। इजरायल की एयर डिफेंस प्रणाली ने इन ड्रोन को इंटरसेप्ट कर नष्ट कर दिया। हालांकि, अब यह आशंका और गहराने लगी है कि यह टकराव सिर्फ एक-दूसरे पर जवाबी कार्रवाई तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसमें और भी क्षेत्रीय ताकतें शामिल हो सकती हैं।

तेल की कीमतों में तेजी और ट्रंप कनेक्शन पर अटकलें

इस तनाव का सीधा असर वैश्विक बाजारों पर दिखना शुरू हो गया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तेल की कीमतों में करीब 7 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह संघर्ष आगे बढ़ता है, तो वैश्विक ऊर्जा संकट गहरा सकता है। वहीं कुछ विश्लेषक इस पूरी स्थिति में डोनाल्ड ट्रंप की रणनीतिक भूमिका को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं, जो अमेरिका में चुनावी साल में अंतरराष्ट्रीय समीकरणों को अपने पक्ष में मोड़ना चाहते हैं।