ईरान और इज़रायल के बीच जारी जंग को लेकर देश में राजनीतिक बयानबाज़ी तेज हो गई है। विपक्ष के नेता लगातार सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठा रहे हैं और ईरान को लेकर चिंता जता रहे हैं। इस मुद्दे पर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने अमेरिका की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं।
महबूबा मुफ्ती ने कहा कि अमेरिका ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सक्रिय नजर आया और उसने कई दावे किए, लेकिन जब गाजा पर इज़रायल की लगातार बमबारी होती है या ईरान पर हमला होता है, तब अमेरिका की तत्परता नदारद हो जाती है। महबूबा के इस बयान को नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला का भी समर्थन मिला। उन्होंने कहा, “आज इज़रायल ने वही किया है जो रूस ने यूक्रेन के साथ किया था। जब रूस हमला करता है तो उसके खिलाफ आंदोलन होता है, लेकिन जब इज़रायल ईरान पर हमला करता है, तो दुनिया की बड़ी ताकतें चुप्पी साध लेती हैं।”
कांग्रेस भी विपक्ष की इस लाइन में शामिल
केवल उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ही नहीं, कांग्रेस पार्टी भी इस मुद्दे पर उसी लाइन पर खड़ी दिख रही है। प्रियंका वाड्रा ने एक बार फिर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर गाजा को लेकर पोस्ट साझा की है, जिसमें उन्होंने इज़रायल पर तीखा हमला बोला है।
इस पूरे घटनाक्रम से यह सवाल खड़ा हो गया है कि विपक्ष आखिर क्यों बार-बार भारत की विदेश नीति के खिलाफ खड़ा नजर आता है? क्या यह सब मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है? यह एक रणनीतिक मामला है, जिसमें देश की एकजुटता सबसे जरूरी है।
वोट बैंक की होड़ में विदेशी ताकतों के साथ विपक्ष
कार्यक्रम के समापन में कहा गया कि पूरा विपक्ष मुस्लिम वोटों के लिए एक-दूसरे से होड़ करता नजर आ रहा है। जब-जब गाजा, पाकिस्तान या ईरान पर स्ट्राइक होती है, विपक्ष की तमाम पार्टियां देश की विदेश नीति को कटघरे में खड़ा कर देती हैं। चाहे महबूबा मुफ्ती हों, उमर अब्दुल्ला हों या कांग्रेस नेता, सब ईरान के साथ खड़े नजर आ रहे हैं।
जबकि भारत सरकार ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। इसके बावजूद विपक्ष विदेशी ताकतों के साथ खड़ा होकर भारत को कमजोर करने की बात करता है