ईरान और इजरायल के बीच जारी तनाव अब खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है, और जबसे अमेरिका ने इस जंग में खुलकर दखल दिया है, हालात और बिगड़ते नजर आ रहे हैं। अमेरिका द्वारा ईरान पर किए गए हालिया हवाई हमले के बाद न केवल पश्चिम एशिया में, बल्कि दुनिया भर में इसका विरोध शुरू हो गया है। इस हमले का असर पाकिस्तान पर भी देखने को मिल रहा है, जहां जनता सड़कों पर उतर आई है और सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। पाकिस्तान, जिसने कभी डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया था, अब खुद उनके खिलाफ प्रदर्शन का गवाह बन रहा है। इस पूरे घटनाक्रम ने पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति को भी हिला कर रख दिया है।
पाकिस्तान में सरकार पर बढ़ा दबाव
ईरान पर अमेरिकी हमले के तुरंत बाद पाकिस्तान में कई शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। जनता अमेरिका के खिलाफ नाराजगी जाहिर कर रही है, लेकिन इसके निशाने पर पाकिस्तान सरकार भी है। भले ही इस्लामाबाद ने हमले की औपचारिक निंदा की हो, लेकिन आम लोगों का मानना है कि पाकिस्तान की प्रतिक्रिया बेहद कमजोर और कूटनीतिक थी। इस नाराजगी का असर शाहबाज शरीफ सरकार पर साफ नजर आ रहा है।
पाकिस्तान की नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (NSC) की आपात बैठक बुलाई गई, जिसमें सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर भी शामिल हुए। बैठक में हालात की गंभीरता को देखते हुए कुछ अहम रणनीतिक फैसले लिए गए। विपक्षी दलों और कई नामचीन हस्तियों ने भी सरकार पर सवाल उठाते हुए मांग की है कि वह अमेरिका के प्रति अपनी नीति पर पुनर्विचार करे।
नोबेल नॉमिनेशन पर विवाद
इस पूरे विवाद में एक और मुद्दा सुर्खियों में आ गया है—डोनाल्ड ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार के लिए पाकिस्तान द्वारा किया गया समर्थन। अब यही नामांकन पाकिस्तान के लिए शर्मिंदगी का सबब बन गया है। राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने सरकार से मांग की है कि वह इस फैसले पर दोबारा विचार करे।
ट्रंप के समर्थन को लेकर सोशल मीडिया पर भी तीखी बहस छिड़ी है। वहीं, जनरल मुनीर की भूमिका को लेकर भी आलोचना तेज हो गई है। सरकार पर सेना के प्रभाव को लेकर भी पुराने सवाल फिर उभरने लगे हैं। इन हालातों ने पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिरता को गहरे संकट में डाल दिया है।