भारत पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाया गया 50% टैरिफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है। चीन, जापान, रूस और ब्राजील जैसे देशों में भी इस फैसले की आलोचना हो रही है। वैश्विक प्रतिक्रिया के बीच यह सवाल उठ रहा है कि क्या भारत ने अमेरिकी दबाव का सामना करने के लिए ठोस रणनीति बना ली है और क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वदेशी फॉर्मूला इस टकराव का जवाब बन सकता है।
भारत पर लागू हुआ अतिरिक्त शुल्क
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में भारत पर अतिरिक्त 25% शुल्क लगाया, जिससे पहले से लागू 25% शुल्क के साथ कुल टैरिफ दर 50% हो गई। अमेरिका का आरोप है कि भारत रूस से सस्ती दरों पर तेल खरीदकर वैश्विक बाजार को प्रभावित कर रहा है। हालांकि भारत का कहना है कि यह निर्णय उसके ऊर्जा सुरक्षा हितों के अनुरूप है और वह अपने आर्थिक फैसले स्वतंत्र रूप से लेगा।
मोदी की रणनीति और ‘स्वदेशी’ पर जोर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टैरिफ विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सरकार घरेलू उद्योगों और किसानों पर इसका असर नहीं पड़ने देगी। उन्होंने ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत अभियान को मजबूत करने की अपील की है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत आयात पर निर्भरता कम करता है और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देता है, तो अमेरिकी टैरिफ का असर सीमित रह सकता है।
ट्रंप पर बढ़ा वैश्विक दबाव
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ट्रंप के इस फैसले को लेकर असहमति सामने आई है। कई देशों का मानना है कि इस तरह के ऊंचे टैरिफ वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हाल के दिनों में राष्ट्रपति ट्रंप ने चार बार प्रधानमंत्री मोदी से बात करने की कोशिश की, लेकिन भारत की ओर से बातचीत नहीं की गई। इसे कूटनीतिक संदेश माना जा रहा है कि भारत अमेरिकी दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है।
राहुल गांधी का बयान
इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मुजफ्फरपुर में आयोजित एक जनसभा में कहा कि 2019 में भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान ट्रंप ने दावा किया था कि उन्होंने मोदी सरकार पर दबाव डालकर स्थिति को नियंत्रित कराया। राहुल गांधी ने इस बयान के जरिए विदेश नीति और कूटनीति पर सवाल उठाए।
टैरिफ विवाद के बीच भारत अपनी आर्थिक और कूटनीतिक रणनीतियों पर जोर दे रहा है। आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री मोदी जापान और चीन की यात्रा पर जाएंगे, जहां बहुपक्षीय मंचों पर यह मुद्दा उठ सकता है। यह देखना अहम होगा कि क्या भारत और अमेरिका के बीच बढ़ता टकराव किसी समझौते पर खत्म होता है या फिर यह विवाद लंबा खिंचता है।