दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को लोकसभा ने मंजूरी दे दी है। संसद के मानसून सत्र के दौरान सोमवार को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने 146 सांसदों के हस्ताक्षर वाले इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया। यह कदम जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास से बेहिसाब नकदी बरामदगी के गंभीर आरोपों के बाद उठाया गया है, जिसने संसद में विपक्ष के जोरदार हंगामे को जन्म दिया।

जस्टिस वर्मा के खिलाफ यह मामला तब सुर्खियों में आया जब 15 मार्च 2025 को उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास के स्टोर रूम में आग लगने के बाद जले हुए नोटों के बंडल बरामद हुए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक जांच पैनल ने पाया कि स्टोर रूम पर जस्टिस वर्मा और उनके परिवार का नियंत्रण था, जिसके आधार पर कदाचार के गंभीर आरोप लगाए गए। इस मामले में जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया था।

लोकसभा में प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वालों में बीजेपी सांसद रविशंकर प्रसाद, अनुराग ठाकुर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सुप्रिया सुले और केसी वेणुगोपाल जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं। राज्यसभा में भी 54 सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। रविशंकर प्रसाद ने कहा, “यह संवैधानिक प्रक्रिया है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए जज का व्यक्तिगत आचरण महत्वपूर्ण है।”

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अरविंद कुमार, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनींदर मोहन श्रीवास्तव और एक प्रतिष्ठित कानून विशेषज्ञ शामिल हैं। यह कमेटी जजेस इंक्वायरी एक्ट, 1968 के तहत आरोपों की जांच करेगी और अपनी रिपोर्ट संसद में पेश करेगी।

संसद में इस मुद्दे पर विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, विपक्ष ने सरकार पर जस्टिस शेखर यादव के मामले को उठाकर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई। हालांकि, सभी दलों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुटता दिखाई।

इस मामले ने न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही के सवाल खड़े किए हैं। कमेटी की जांच और संसद में होने वाली चर्चा इस मामले के भविष्य को तय करेगी।