महाराष्ट्र में सत्ता का समीकरण लगातार बदलता नजर आ रहा है। शिंदे सरकार को केंद्र में शामिल हुए 2 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब भी कैबिनेट का विस्तार अधूरा है। देवेंद्र फडणवीस, जो मुख्यमंत्री पद की दौड़ में माने जा रहे थे, अब तक पूरी तरह सक्रिय भूमिका में नहीं दिख रहे हैं। सूत्रों की मानें तो शिंदे सरकार की देरी और नीतिगत अस्थिरता को लेकर दिल्ली में भाजपा के आला नेताओं के बीच नाराज़गी है।

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने यह स्पष्ट किया है कि आने वाले निकाय चुनावों, विशेषकर मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव में अगर भाजपा को मनचाही सफलता नहीं मिली, तो फडणवीस को हटाया जा सकता है। यह संकेत भी मिला है कि एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाए रखने का फैसला भी भविष्य की स्थिति पर निर्भर करेगा। इसका असर न केवल राज्य की राजनीति पर बल्कि केंद्र और महाराष्ट्र के बीच के समीकरण पर भी पड़ेगा।

बीएमसी चुनाव में शक्ति प्रदर्शन की तैयारी

भाजपा और शिंदे गुट के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती बीएमसी चुनाव हैं। उद्धव ठाकरे के साथ शिवसेना का पारंपरिक गढ़ रहे मुंबई में अब भाजपा अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।

लेकिन दिक्कत यह है कि अभी तक बीजेपी और शिंदे गुट में सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई है। दोनों पक्ष अपने-अपने कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने की कोशिश में लगे हुए हैं।

बीजेपी की योजना है कि वह अकेले चुनाव लड़े और बहुमत हासिल करे। वहीं, शिंदे गुट खुद को कमजोर दिखाना नहीं चाहता। इन सबके बीच ठाकरे गुट और कांग्रेस-NCP गठबंधन इस असमंजस का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा, राज्य में घुसपैठियों का मुद्दा भी चर्चा में है। खासकर बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी को लेकर बीजेपी लगातार सवाल उठा रही है। पार्टी इसे राष्ट्र सुरक्षा से जोड़कर BMC चुनाव में मुद्दा बनाना चाहती है।

इन तमाम राजनीतिक घटनाक्रमों से साफ है कि आने वाले दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति और भी दिलचस्प मोड़ ले सकती है। बीजेपी के लिए BMC चुनाव एक बड़ी परीक्षा होंगे और इसका असर देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे की राजनीतिक भविष्य पर भी पड़ेगा।