बिहार की सियासत में हलचल और तेज़ हो गई है। लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने 2025 का विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने किसी आरक्षित सीट की बजाय सामान्य सीट से मैदान में उतरने का फैसला लिया है। चिराग का यह कदम महज़ चुनावी दांव नहीं, बल्कि तेजस्वी यादव की बढ़ती लोकप्रियता और नीतीश कुमार की ढलती राजनीतिक पकड़ को चुनौती देने की रणनीति भी मानी जा रही है। एलजेपी का यह निर्णय क्या एक नई राजनीतिक धुरी बनाने की कोशिश है या फिर बीजेपी के लिए भविष्य का बैकअप चेहरा?

बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे लोकप्रिय चेहरा इस समय आरजेडी नेता तेजस्वी यादव हैं। हालिया सर्वे में तेजस्वी को 36.9% लोगों ने समर्थन दिया, वहीं नीतीश कुमार को महज़ 18.4% और चिराग पासवान को 10.6% लोग सीएम के तौर पर देखना चाहते हैं। बीजेपी नेता सम्राट चौधरी इससे भी पीछे हैं। एनडीए इस बार भले ही नीतीश कुमार को ही चेहरा बनाए हुए है, लेकिन तेजस्वी की लोकप्रियता गठबंधन को अंदरखाने बेचैन कर रही है।

एलजेपी का सियासी इरादा

एलजेपी की बैठक में चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने पर मुहर लग चुकी है और वह पहली बार बिहार की ज़मीन पर अपने सियासी कद का इम्तिहान देंगे। राजनीति के जानकार मानते हैं कि चिराग बिहार में अपनी सियासी हैसियत मजबूत करना चाहते हैं। उन्होंने खुद भी कहा है कि पार्टी अगर कहेगी, तो वो राज्य में रहकर काम करने को तैयार हैं। चिराग का मानना है कि युवाओं को राज्य से बाहर जाने की मजबूरी खत्म करनी होगी।

एनडीए का भविष्य और चिराग की भूमिका

नीतीश कुमार के कमजोर होते जनाधार को देखते हुए बीजेपी अब नए चेहरों की ओर देख रही है। ऐसे में चिराग पासवान को एनडीए का भविष्य का चेहरा माना जा रहा है। यही वजह है कि बीजेपी नेता चिराग के फैसले का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। चिराग का सामान्य सीट से चुनाव लड़ना इस बात का संकेत है कि वह जातिवाद की राजनीति से ऊपर उठकर पूरे बिहार का नेता बनने की कोशिश में हैं।

चिराग ने पहले ही ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ का नारा दिया था और अब वह उसी दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं। सर्वे आंकड़े भी बताते हैं कि फरवरी से मई के बीच उनकी लोकप्रियता में इज़ाफा हुआ है। अब देखना होगा कि यह युवा नेता बिहार की राजनीति में कितनी गहराई तक असर डाल पाता है।