कलकत्ता हाईकोर्ट के ताजा फैसले ने ममता बनर्जी सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कोर्ट ने 2016 की भर्ती प्रक्रिया की वेटिंग लिस्ट में शामिल उम्मीदवारों की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को झटका दिया है। हाईकोर्ट ने ग्रुप-सी और ग्रुप-डी के उन कर्मचारियों को भर्ती देने के निर्देशों को खारिज कर दिया है, जिन्हें पहले नौकरी से निकाला गया था। इस फैसले के बाद बंगाल सरकार की प्रशासनिक मंशा और पारदर्शिता पर बहस छिड़ गई है। इसी बीच कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अस्पताल से छुट्टी मिलते ही विदेश नीति पर लेख लिखकर केंद्र की खामोशी पर सवाल उठाए हैं। राहुल गांधी ने भी ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों को फेल करार दिया है। इन सभी घटनाक्रमों ने देश की सियासत को नई दिशा में मोड़ दिया है।

हाईकोर्ट का सख्त रुख और ममता सरकार की किरकिरी

कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस अमृता सिन्हा ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को निकाले गए कर्मचारियों को भत्ता देने का कोई अधिकार नहीं है। सरकार ने बिना किसी ठोस नीति और वैध प्रक्रिया के यह कदम उठाया था। कोर्ट ने बंगाल सरकार की उस सहायता योजना पर भी अंतरिम रोक लगा दी है जिसके तहत निकाले गए कर्मचारियों को आर्थिक राहत देने की बात कही गई थी। इस आदेश के बाद राज्य सरकार की कार्यप्रणाली और फैसलों पर गंभीर संदेह खड़े हो गए हैं।

यह मामला 2016 की ग्रुप-सी और ग्रुप-डी भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है, जिसे लेकर लंबे समय से विवाद चला आ रहा था। हाईकोर्ट पहले ही इस भर्ती प्रक्रिया को अवैध ठहरा चुकी है और अब उससे जुड़े कर्मचारियों को भत्ता देने की योजना को भी खारिज कर दिया है। कोर्ट ने इस फैसले के जरिए यह संकेत दिया है कि नीतिगत फैसलों में पारदर्शिता और वैधानिकता जरूरी है।

सोनिया और राहुल का विदेश नीति पर हमला

इसी बीच सोनिया गांधी ने एक अखबार में लेख लिखकर केंद्र सरकार की विदेश नीति पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने ईरान-इजरायल जंग के संदर्भ में भारत की चुप्पी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। सोनिया गांधी का कहना है कि भारत को वैश्विक मंचों पर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए थी, लेकिन सरकार ने रणनीतिक चुप्पी साध रखी है।

राहुल गांधी ने भी सरकार की आर्थिक और रक्षा नीतियों पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने ‘मेक इन इंडिया’ को पूरी तरह विफल करार देते हुए कहा कि सरकार सिर्फ प्रचार में व्यस्त है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है। उनका मानना है कि भारत की सामरिक क्षमता और अंतरराष्ट्रीय साख दोनों कमजोर हो रहे हैं।

इन तमाम घटनाओं ने मौजूदा सरकारों की जवाबदेही और कार्यशैली को लेकर नई बहस को जन्म दे दिया है, जिसमें कानून, नीतियां और विदेश नीति सभी कटघरे में हैं।