बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगातार दूसरे दिन सुनवाई हुई। कोर्ट ने चुनाव आयोग (EC) को राहत देते हुए SIR प्रक्रिया को मतदाता हितैषी बताया और विपक्ष की दलीलों को खारिज कर दिया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार को बदनाम करने की कोशिशों पर नाराजगी जताई और कहा कि यह प्रक्रिया पारदर्शी और वैध है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि SIR में शामिल 11 दस्तावेज बिहार के ज्यादातर मतदाताओं के पास उपलब्ध नहीं हैं। उन्होंने वोटर आईडी और आधार कार्ड को मान्यता न देने पर सवाल उठाया। हालांकि, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “यह प्रक्रिया मतदाताओं के खिलाफ नहीं, बल्कि उनके हित में है। बिहार के लोग पढ़े-लिखे और गंभीर हैं, उन्हें बदनाम करना ठीक नहीं।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर सभी 11 दस्तावेज मांगे जाते, तो इसे मतदाताओं के खिलाफ माना जाता।
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में कहा कि SIR का उद्देश्य वोटर लिस्ट से अपात्र नाम हटाना और इसे विश्वसनीय बनाना है। आयोग के अनुसार, बिहार में 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 91.69% ने गणना फॉर्म जमा कर दिए हैं। इसमें 22 लाख मृत, 36 लाख प्रवासी, और 7 लाख डुप्लिकेट मतदाता पाए गए। आयोग ने दावा किया कि प्रक्रिया में 1.5 लाख बूथ लेवल एजेंट्स की भागीदारी रही है।
विपक्ष ने SIR को लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए बीजेपी पर आयोग के दबाव में काम करने का आरोप लगाया। बीजेपी ने जवाब में कहा कि विपक्ष का EC और EVM पर सवाल उठाना उनकी आदत है। विपक्षी नेताओं, जिसमें राहुल गांधी और तेजस्वी यादव शामिल हैं, ने इस मुद्दे पर दिल्ली में प्रदर्शन भी किया।
सुप्रीम कोर्ट ने आधार और वोटर आईडी को शामिल करने पर विचार करने को कहा, लेकिन ड्राफ्ट लिस्ट के प्रकाशन पर रोक से इनकार कर दिया। अगली सुनवाई में कोर्ट इस मामले पर अंतिम फैसला सुना सकता है।
बिहार में SIR विवाद का सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला न केवल राज्य के 2025 विधानसभा चुनावों, बल्कि देश की चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी असर डाल सकता है। सभी की नजरें अब कोर्ट के अगले कदम पर टिकी हैं।