पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर की अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के साथ हुई हाई-प्रोफाइल और गोपनीय बैठक ने पाकिस्तान के भीतर और बाहर कई तरह की आशंकाओं को जन्म दे दिया है। बिना किसी पाकिस्तानी नागरिक प्रतिनिधि के व्हाइट हाउस के कैबिनेट रूम में हुई यह बैठक सिर्फ जनरल मुनीर और ISI प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल असीम मलिक की मौजूदगी में हुई। इस असामान्य राजनीतिक-दैनिक समीकरण ने देश में सैन्य वर्चस्व, लोकतंत्र की उपेक्षा और अमेरिका के साथ सैन्य गठजोड़ को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अमेरिका के साथ एकतरफा रिश्तों की नई पटकथा?
18 जून को हुई इस बैठक को पाकिस्तान-अमेरिका संबंधों में एक ऐतिहासिक और विवादित मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। डॉन अखबार के मुताबिक, किसी अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा पहली बार पाकिस्तानी सेना प्रमुख को इस तरह अलग से बुलाकर बातचीत करना, वह भी किसी राजनयिक या राजनीतिक प्रतिनिधि के बिना, इस बात का संकेत है कि पाकिस्तान की विदेश नीति अब पूरी तरह से सैन्य एजेंडे से संचालित हो रही है।
बैठक में जनरल मुनीर और ISI प्रमुख के अलावा कोई भी पाकिस्तानी मंत्री, राजदूत या राजनीतिक चेहरा शामिल नहीं था। इससे यह संदेश गया कि अमेरिका के साथ पाकिस्तान की रणनीतिक बातचीत अब पूरी तरह सेना के हाथों में है — और इसमें लोकतांत्रिक संस्थाओं की भूमिका गौण होती जा रही है।
पाकिस्तान की संप्रभुता और लोकतंत्र पर गंभीर आरोप
इस बैठक के बाद जनरल मुनीर पर कई गंभीर आरोप लगे हैं। विपक्षी दलों और स्वतंत्र विश्लेषकों ने आरोप लगाया है कि मुनीर ने अमेरिका को पाकिस्तान की वायुसेनाओं के बेस सौंप दिए हैं, अमेरिकी विमानों को पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल की इजाजत दी गई है और साथ ही अमेरिका में इमरान खान के खिलाफ लॉबिंग करने में भी उनकी भूमिका रही है।
इसके अलावा, आरोप है कि जनरल मुनीर पाकिस्तान को एक बार फिर अमेरिका की ‘फ्रंटलाइन स्टेट’ बनाने की कोशिश में हैं — एक ऐसा देश जो क्षेत्रीय और वैश्विक संघर्षों में अमेरिका का पहला मोहरा बन जाए, जबकि देश के अंदर लोकतांत्रिक ताकतों को दबाया जा रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम ने पाकिस्तान की संप्रभुता, लोकतंत्र और विदेश नीति की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।