केंद्र सरकार ने देश की राजनीति में हलचल मचाते हुए कट्टरपंथ से जुड़े संगठनों के खिलाफ बड़ा कदम उठाया है। मंगलवार को चुनाव आयोग ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की राष्ट्रीय मान्यता रद्द कर दी, वहीं केंद्र ने 12 कट्टरपंथी ‘मौलाना दलों’ पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। सरकार का कहना है कि ये संगठन देश विरोधी गतिविधियों और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में लिप्त थे।
ओवैसी की पार्टी पर क्यों गिरी गाज?
चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, AIMIM लगातार चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन, धार्मिक आधार पर वोट मांगने और आपत्तिजनक भाषणों के कारण जांच के दायरे में थी। इसके अलावा पार्टी पर विदेशों से संदिग्ध फंडिंग के आरोप भी लगे थे। आयोग ने इन आधारों पर AIMIM की राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता रद्द कर दी है, जिससे पार्टी अब कई राज्यों में मिलने वाली विशेष सुविधाएं खो देगी।
गृह मंत्रालय ने 12 मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों को “गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम” (UAPA) के तहत प्रतिबंधित कर दिया है। इन संगठनों पर देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने, आतंकियों से कथित संबंध रखने और विदेशी ताकतों से सांठगांठ के आरोप हैं। हालांकि सरकार ने इन संगठनों के नामों का आधिकारिक ऐलान नहीं किया है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक इनमें दक्षिण और पूर्वी भारत के कुछ क्षेत्रीय मुस्लिम संगठन भी शामिल हैं।
गृह मंत्री अमित शाह ने इस कार्रवाई को “देश की सुरक्षा और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए जरूरी कदम” बताया। एक रैली में उन्होंने कहा, “सेक्युलरिज्म के नाम पर वोट बैंक की राजनीति करने वालों को अब जवाब देना होगा। देश विरोधी ताकतों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार के कदम को लोकतंत्र पर हमला बताया और कहा कि उनकी पार्टी कानूनी लड़ाई लड़ेगी। विपक्षी दलों ने भी इस कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए इसे एकतरफा और राजनीति से प्रेरित बताया है, जबकि बीजेपी नेताओं ने फैसले को देशहित में उठाया गया ऐतिहासिक कदम बताया।
अब सभी प्रतिबंधित संगठनों की संपत्तियों की जांच शुरू होगी और उनके नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियां कानूनी कार्यवाही करेंगी। वहीं AIMIM की राज्य स्तर की मान्यताएं भी प्रभावित हो सकती हैं।
यह कार्रवाई न सिर्फ देश की सुरक्षा नीति की दिशा में बड़ा संकेत है, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले कट्टरपंथी राजनीति पर सरकार की सख्ती भी दर्शाती है। अब निगाहें इस पर होंगी कि अदालतें और आयोग इस कार्रवाई को किस तरह से देखते हैं और क्या यह भविष्य में राजनीतिक परिदृश्य को बदलेगा।