बिहार चुनावी सरगर्मी के बीच सियासत गर्मा गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माँ के अपमान को लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने शनिवार को बिहार बंद का आह्वान किया। इस बंद का नेतृत्व बीजेपी महिला मोर्चा ने किया और राज्यभर में व्यापक विरोध प्रदर्शन किए गए। सड़कों पर उतरे एनडीए कार्यकर्ताओं ने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव का पुतला फूंका और नारेबाजी की।

महिला मोर्चा ने संभाला आंदोलन

बिहार बंद के दौरान पटना सहित कई जिलों में महिला मोर्चा की कार्यकर्ताओं ने विरोध की कमान संभाली। “माँ का अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान” जैसे नारे लगाते हुए कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह प्रदर्शन किया। बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने भी इस बंद में सक्रिय भागीदारी निभाई और विपक्ष पर असम्मानजनक भाषा के इस्तेमाल का आरोप लगाया।

प्रमुख नेताओं की मौजूदगी

राजधानी पटना, भागलपुर, गया और मुजफ्फरपुर जैसे बड़े शहरों में बीजेपी और एनडीए के कई वरिष्ठ नेताओं ने विरोध मार्च में हिस्सा लिया। एनडीए कार्यकर्ताओं ने सड़क जाम कर सरकार विरोधी नारे लगाए और आरोप लगाया कि विपक्ष जनता का ध्यान भटकाने के लिए अपमानजनक राजनीति कर रहा है।

चुनावी पृष्ठभूमि में बढ़ा तनाव

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विरोध सिर्फ भावनात्मक मुद्दे तक सीमित नहीं है, बल्कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए इसे सियासी रणनीति से भी जोड़ा जा रहा है। चुनाव आयोग द्वारा अक्टूबर में तारीखों का ऐलान किए जाने की संभावना है, और नवंबर में राज्य में मतदान हो सकता है। ऐसे में बीजेपी विपक्ष पर हमलावर होकर चुनावी माहौल अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटी है।

विपक्ष पर सीधा हमला

बीजेपी नेताओं ने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पर सीधा हमला बोला और कहा कि “माँ के अपमान को देश की जनता कभी बर्दाश्त नहीं करेगी।” पुतला दहन कार्यक्रम के दौरान भी कार्यकर्ताओं ने विपक्षी नेताओं पर “परिवारवाद और असम्मानजनक राजनीति” का आरोप लगाया।

बिहार बंद के असर को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज है। जहां बीजेपी इसे जनभावनाओं का प्रतीक बता रही है, वहीं विपक्ष का कहना है कि सत्ताधारी दल चुनावी फायदे के लिए भावनात्मक मुद्दों का इस्तेमाल कर रहा है। अब निगाहें चुनाव आयोग की घोषणा पर टिकी हैं, जो अक्टूबर में हो सकती है। उसके बाद ही साफ होगा कि यह मुद्दा चुनावी रुझान को किस हद तक प्रभावित करता है।