भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच साझेदारी को लेकर हाल के दिनों में कई सकारात्मक बयान सामने आए हैं। अमेरिकी दूतावास ने इस रिश्ते को “21वीं सदी का निर्णायक संबंध” बताते हुए कहा है कि दोनों देशों के बीच नवाचार, उद्यमिता, रक्षा और द्विपक्षीय संबंधों के क्षेत्र में सहयोग लगातार नई ऊँचाइयों को छू रहा है। वहीं अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी भारत-अमेरिका के बीच स्थायी मित्रता को दोनों देशों की साझेदारी का आधार बताया।
अमेरिकी दूतावास की ओर से जारी संदेश में कहा गया कि “यह साझेदारी उन लोगों, प्रगति और संभावनाओं पर आधारित है जो हमें आगे बढ़ा रहे हैं। नवाचार और उद्यमिता से लेकर रक्षा और कूटनीतिक संबंधों तक, हमारे दोनों देशों के लोगों के बीच की स्थायी मित्रता ही इस यात्रा को गति देती है।” संदेश में सोशल मीडिया अभियान #USIndiaFWDforOurPeople का भी उल्लेख किया गया है।
विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा, “हमारे दोनों देशों के लोगों के बीच की स्थायी मित्रता हमारे सहयोग की नींव है और हमें आगे बढ़ाती है क्योंकि हम अपने आर्थिक संबंधों की अपार संभावनाओं को समझते हैं।” उनके इस बयान को भारत-अमेरिका के बीच बढ़ते सहयोग और भविष्य की संभावनाओं पर सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।
हालांकि, इस सकारात्मक माहौल के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो का बयान चर्चा में है। नवारो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना करते हुए उन्हें “महान नेता” बताया, लेकिन साथ ही सवाल उठाया कि भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के बावजूद रूस और चीन के साथ निकटता क्यों बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा, “मैं बस इतना कहूँगा कि भारतीय लोग समझें कि यहाँ क्या हो रहा है।”
विश्लेषकों का मानना है कि नवारो की टिप्पणी अमेरिका में उन हलकों की चिंता को दर्शाती है जो भारत की रूस और चीन के साथ कूटनीतिक सक्रियता को लेकर असहज हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब तियानजिन में हुए शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की उपस्थिति ने वैश्विक स्तर पर ध्यान खींचा है।
भारत-अमेरिका संबंध फिलहाल रक्षा, तकनीकी सहयोग और व्यापार जैसे क्षेत्रों में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन नवारो की टिप्पणी यह साफ करती है कि वॉशिंगटन के भीतर अब भी कुछ वर्ग भारत की बहुपक्षीय कूटनीति को लेकर सवाल उठा रहे हैं। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत इन समीकरणों को संतुलित करते हुए अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को किस दिशा में ले जाता है।





