चीन के तियानजिन में सोमवार को आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन भारत के लिए कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण साबित हुआ। संयुक्त घोषणापत्र में पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा की गई, जिसे भारत की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन में आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश देते हुए SCO को “सिक्योरिटी, कनेक्टिविटी और अपॉर्चुनिटी” यानी सुरक्षा, संपर्क और अवसर का मंच बताया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि आतंकवाद शांति और विकास की राह में सबसे बड़ा अवरोध है और इस खतरे के खिलाफ वैश्विक समुदाय को एकजुट होना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि जो देश आतंकवाद को समर्थन और पनाह देते हैं, उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जवाबदेह ठहराना आवश्यक है। SCO के 22 सदस्य देशों ने अपने संयुक्त बयान में आतंकवाद और आतंकियों की निंदा की, जिससे पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ता दिखाई दिया।

सम्मेलन के दौरान भारत-रूस की मित्रता भी केंद्र में रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच करीब 40 मिनट तक द्विपक्षीय बैठक हुई। दोनों नेताओं ने ऊर्जा सहयोग, व्यापार और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की। बैठक से पहले दोनों नेताओं ने एक ही कार में सफर किया और एक-दूसरे को गर्मजोशी से गले लगाया। राष्ट्रपति पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी को “प्रिय मित्र” कहा, जबकि मोदी ने रूस को भारत का कठिन समय का साथी बताया।

साथ ही, SCO मंच पर भारत, रूस और चीन की मौजूदगी ने अमेरिका का ध्यान भी खींचा। अमेरिकी दूतावास ने भारत-अमेरिका संबंधों को “21वीं सदी का परिभाषित रिश्ता” बताते हुए सोशल मीडिया पर बयान जारी किया। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी कहा कि भारत और अमेरिका की जनता के बीच की गहरी मित्रता दोनों देशों की साझेदारी का आधार है। विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान अमेरिका की बढ़ती चिंताओं को दर्शाता है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के लिए यह सम्मेलन चुनौतीपूर्ण साबित हुआ। भारत और अन्य देशों की ओर से आतंकवाद पर सख्त रुख अपनाए जाने के कारण वे बैठक में अलग-थलग नजर आए।

SCO शिखर सम्मेलन से यह साफ हुआ कि भारत ने आतंकवाद के मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है और क्षेत्रीय सहयोग को आगे बढ़ाने की दिशा में अहम भूमिका निभाई है। अब आने वाले समय में यह देखना होगा कि भारत की इस कूटनीतिक पहल का असर क्षेत्रीय समीकरणों पर किस तरह पड़ता है।