कांग्रेस पार्टी इन दिनों अंदरूनी कलह और प्रादेशिक असंतोष से जूझ रही है। कर्नाटक से लेकर पंजाब तक पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं। एक ओर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार राहुल गांधी से मुलाकात के लिए समय मांग रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी का ओडिशा दौरे पर निकल जाना कांग्रेस के अंदर संकट को और गहरा करता दिख रहा है।
कर्नाटक में दोनों शीर्ष नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर उनकी बात नहीं सुनी गई, तो वे बड़ा फैसला ले सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, सिद्धारमैया ने संकेत दिए हैं कि अगर शीघ्र मुलाकात नहीं हुई तो वे पार्टी के खिलाफ कदम उठा सकते हैं। वहीं डीके शिवकुमार ने भी संगठन को लेकर नाराजगी जताई है और अपने तेवर सख्त किए हैं। माना जा रहा है कि आने वाले 48 घंटों में कर्नाटक कांग्रेस में बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम सामने आ सकता है।
दूसरी ओर पंजाब में भी सियासी हलचल तेज हो गई है। विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और नेता विपक्ष प्रताप सिंह बाजवा के बीच तीखी बहस हुई। इसके बाद कांग्रेस विधायकों ने सदन से वॉकआउट कर दिया और सरकार पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अवहेलना का आरोप लगाया। भगवंत मान ने कांग्रेस और बीजेपी को “फूट डालने वाली पार्टियां” करार देते हुए सियासी हमला बोला, जिस पर कांग्रेस ने पलटवार करते हुए आम आदमी पार्टी पर पंजाब को “लूटने” का आरोप लगाया।
महाराष्ट्र में भी कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है। स्थानीय चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन और सांगठनिक ढांचे को लेकर कई वरिष्ठ नेता नाराज चल रहे हैं। पार्टी राज्य में राजनीतिक मुख्यधारा से दूर होती दिख रही है।
इन सबके बीच, कांग्रेस नेतृत्व पर यह बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या वह समय रहते इन प्रादेशिक असंतोषों को संभाल पाएगा? राहुल गांधी की चुप्पी और प्राथमिकताओं को लेकर उठ रहे सवाल पार्टी की रणनीति को लेकर चिंता बढ़ा रहे हैं।
कर्नाटक और पंजाब में कांग्रेस के सामने जो चुनौतियाँ हैं, वे नेतृत्व के सामने एक गंभीर परीक्षा बनकर उभरी हैं। यदि पार्टी इन मुद्दों का शीघ्र समाधान नहीं करती, तो कई राज्यों में संगठनात्मक संकट और गहरा सकता है। अगले कुछ दिन कांग्रेस के लिए बेहद निर्णायक साबित हो सकते हैं।