सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में वोटर लिस्ट सुधार को लेकर दायर याचिका पर अहम फैसला सुनाते हुए SIR (Systematic Investigation of Roll) प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति संजय कुमार और संजीव खन्ना की दो सदस्यीय पीठ ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में सुधार अपने आप में गलत नहीं है। अब इस मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई को निर्धारित की गई है।

बिहार में मतदाता सूची सुधार को लेकर सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के बीच राजनीतिक तकरार तेज हो गई है। विपक्ष का आरोप है कि राज्य सरकार और चुनाव आयोग वोटर लिस्ट में जानबूझकर बदलाव कर रहे हैं ताकि जातीय समीकरणों को प्रभावित किया जा सके। इस संदर्भ में सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में विपक्ष की ओर से पक्ष रखते हुए कहा कि चुनाव आयोग की ओर से इस प्रक्रिया की टाइमिंग पर सवाल उठते हैं, क्योंकि यह संभावित विधानसभा चुनावों से पहले की जा रही है।

हालांकि, शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए रोक लगाने से इंकार कर दिया कि मतदाता सूची में त्रुटियों को सुधारने की प्रक्रिया संविधान के अनुरूप है और इसका उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। अदालत ने चुनाव आयोग से यह भी स्पष्ट करने को कहा है कि वह यह प्रक्रिया किन मानकों के तहत और किस समयसीमा में पूरी कर रहा है।

चुनाव आयोग की ओर से पेश अधिवक्ता ने दलील दी कि SIR एक नियमित प्रक्रिया है जो हर राज्य में समय-समय पर की जाती है ताकि मतदाता सूची को अद्यतन और सटीक रखा जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि इसमें किसी भी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं है।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी संकेत दिए कि वह मामले के संवेदनशील पहलुओं को समझने के लिए सभी पक्षों की दलीलों को गंभीरता से सुनेगा। 28 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई में कोर्ट चुनाव आयोग की रिपोर्ट और राज्य सरकार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए आगे का रुख तय कर सकता है।

बिहार की राजनीति में मतदाता सूची को लेकर खिंचतान के बीच सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला विपक्ष के लिए झटका माना जा रहा है। अब सभी की नजरें 28 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जिसमें इस संवेदनशील मुद्दे पर और स्पष्टता आने की उम्मीद है।