इजरायल और ईरान के बीच जारी युद्ध ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ा दी है, और इसी बीच कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने एक बड़े अख़बार में लेख लिखकर इजरायल के हमले की आलोचना की है। सोनिया गांधी ने कहा कि ऐसे गंभीर हालात में भारत सरकार की चुप्पी बेहद परेशान करने वाली है। लंबे समय से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहीं सोनिया गांधी ने अस्पताल से लौटने के महज दो दिन बाद यह लेख लिखा है, जिसने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। क्या यह कांग्रेस की कोई नई रणनीति है? क्या विदेश नीति के मोर्चे पर विपक्ष सरकार को घेरने की तैयारी कर रहा है?

भारत की चुप्पी पर उठाए सवाल

सोनिया गांधी के इस लेख को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर साझा किया। लेख में सोनिया गांधी ने लिखा कि भारत और इजरायल के बीच बीते कुछ दशकों में रणनीतिक संबंध विकसित हुए हैं, जो भारत को एक जिम्मेदार और संतुलित भूमिका निभाने की ताकत देते हैं। उन्होंने कहा कि भारत को चाहिए कि वह मध्यस्थ की भूमिका में आए और तनाव कम कराने के प्रयास करे, न कि चुप्पी साधे रखे।

उनका यह कहना है कि जब दुनिया के बड़े देश इस युद्ध को लेकर सक्रिय हैं, तब भारत का खामोश रहना उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत ने हमेशा शांति और संवाद की वकालत की है, लेकिन मौजूदा सरकार का रवैया उस परंपरा से मेल नहीं खा रहा।

राजनीतिक मकसद या सैद्धांतिक चिंता?

सोनिया गांधी के इस लेख के बाद भाजपा और अन्य आलोचकों ने सवाल उठाए हैं कि क्या यह लेख सिर्फ विदेश नीति पर चिंता जताने के लिए है या इसके पीछे कांग्रेस की कोई रणनीतिक तैयारी है। खासतौर पर ऐसे समय में जब सोनिया गांधी खुद लंबे समय से बीमार हैं, और सक्रिय राजनीति से दूरी बनाए हुए हैं, उनका यह लेख सीधे-सीधे मोदी सरकार की विदेश नीति पर प्रहार करता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस लेख के जरिए कांग्रेस ने संकेत दिया है कि वह वैश्विक मुद्दों पर भी सरकार को घेरने की तैयारी में है। वहीं कुछ का यह भी कहना है कि यह लेख सिर्फ सोनिया गांधी की अंतरात्मा की आवाज है, जिसे उन्होंने सार्वजनिक मंच पर रखा है।