राजनीति में बयान कब, कैसे और क्यों बदले जाते हैं—इसका ताज़ा उदाहरण समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं। कभी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आलोचना करने वाले अखिलेश अब उन्हीं की तर्ज़ पर बात करते दिख रहे हैं। इससे जनता के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है और उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं।
हाल ही में सीएम योगी ने बहराइच में महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा का अनावरण किया और पुरानी सरकारों पर उपेक्षा का आरोप लगाया। इसी कड़ी में अखिलेश यादव ने ऐलान किया कि अगर उनकी सरकार बनी तो वे गोमती रिवर फ्रंट पर महाराजा सुहेलदेव की सोने की प्रतिमा लगवाएंगे। इस बयान ने दोनों समुदायों में असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है। हिंदू मतदाता हैरान हैं कि जब अखिलेश को सत्ता मिली थी, तब उन्होंने ऐसा कोई कदम क्यों नहीं उठाया। वहीं मुस्लिम समुदाय, जिन्हें अखिलेश यादव लंबे समय से साधने की कोशिश करते रहे हैं, खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
अब्बास अंसारी की सदस्यता रद्द होने पर भी अखिलेश यादव ने सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कार्रवाई सिर्फ समाजवादी पार्टी के नेताओं पर हो रही है। इस पर ओपी राजभर के करीबी महेंद्र राजभर ने भी कहा कि अब्बास मुस्लिम हैं, इसलिए उनके खिलाफ इतनी तेजी दिखाई गई। हालांकि सरकार का पक्ष साफ है कि कानून सबके लिए एक जैसा है और फैसला कोर्ट के आदेश के मुताबिक हुआ।
बुलडोजर एक्शन पर भी अखिलेश यादव की चुप्पी चर्चा में है। सीएम योगी के कार्यकाल में जब भी मुस्लिम धार्मिक स्थलों पर बुलडोजर चला, अखिलेश ने विरोध जताया। लेकिन हाल ही में जब आठ अवैध दुकानों को गिराया गया, तो उन्होंने कुछ नहीं कहा। नगर पालिका ने ये कार्रवाई सरकारी भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराने के तहत की थी। इससे साफ है कि अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया अब मुद्दों के अनुसार बदलने लगी है।
स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर अखिलेश ने एक एक्स-रे रिपोर्ट दिखाकर सरकार पर हमला बोला। उन्होंने यूपी की स्वास्थ्य सेवाओं को कमजोर बताया। जबकि आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में अब 65 से ज़्यादा मेडिकल कॉलेज काम कर रहे हैं और मातृ व शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। उनकी यह आलोचना अब राजनीतिक रणनीति से ज़्यादा सत्ता वापसी की बेचैनी लगती है।