भारत के सिंधु जल समझौते पर लिए गए सख्त फैसले ने पाकिस्तान की नींव हिला दी है। हालात ऐसे बन गए हैं कि लाहौर से लेकर इस्लामाबाद तक लोग पानी के लिए तरसने लगे हैं। भारत के किशनगंगा और रतले जैसे प्रोजेक्ट अब सिंधु नदी की मुख्यधारा पर नियंत्रण स्थापित कर रहे हैं, जिससे पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ती जा रही है। पहले जो देश आतंकी गतिविधियों में व्यस्त था, आज वही देश “पानी दे दीजिए” जैसी विनती करता दिख रहा है।

भारत ने बदला रुख, पाकिस्तान को अब नहीं मिलेगा ‘मुफ्त का पानी’

सालों से पाकिस्तान सिंधु जल समझौते के तहत पानी लेता आ रहा था, जबकि इसके बदले में वह भारत को बार-बार धोखा देता रहा। अब जब भारत ने इस समझौते पर दोबारा सोचने की प्रक्रिया शुरू की है, तो पाकिस्तान बौखला गया है। अब तक वह भारत को चार चिट्ठियां लिख चुका है — जिसमें बातचीत की अपील की गई है और पानी देने की गुहार लगाई गई है।

भारत ने साफ कर दिया है कि अब “आतंक और पानी साथ नहीं चल सकते।” पाकिस्तान को यह समझना होगा कि भारत अब नर्म रुख अपनाने को तैयार नहीं है। जल शक्ति मंत्रालय को भेजे गए पाकिस्तान के पत्र अब खोखले दिखते हैं, क्योंकि विश्व स्तर पर भी उसकी छवि लगातार गिरती जा रही है।

पानी की राजनीति में फंसा पाकिस्तान, जनता बेहाल

पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति भी लगातार बिगड़ती जा रही है। जनता को पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा, और सरकार विदेशों से कर्ज लेकर बुनियादी जरूरतें पूरी करने में असमर्थ साबित हो रही है। जल संकट ने पाकिस्तान के प्रशासनिक ढांचे की कमजोरी उजागर कर दी है।

भारत अब अपने अधिकारों को लेकर सजग है। दशकों पुराने समझौते पर पुनर्विचार की प्रक्रिया न सिर्फ कूटनीतिक बदलाव का संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत अब अपनी नदियों और संसाधनों को लेकर किसी दबाव में नहीं आने वाला। पाकिस्तान को ये समझना होगा कि बार-बार चिट्ठी लिखने से पानी नहीं मिलेगा — उसके लिए पहले भरोसे और बर्ताव में बदलाव लाना होगा।