केंद्र सरकार ने वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता के लिए ‘Umeed’ नाम से एक डिजिटल पोर्टल लॉन्च किया है। इसका उद्देश्य देशभर में फैली वक्फ ज़मीनों और संपत्तियों का सही रिकॉर्ड तैयार करना, अवैध कब्जों पर रोक लगाना और जनता के सामने हर जानकारी को पारदर्शी बनाना है। लेकिन जहां सरकार इस पहल को सुधार की दिशा में एक जरूरी कदम मान रही है, वहीं कुछ धार्मिक संगठन इसके खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। दरअसल, पहली बार वक्फ से जुड़ी संपत्तियां तकनीक की नज़र में आ रही हैं और यही कई लोगों को असहज कर रहा है।

सरकार की पहल से जवाबदेही की शुरुआत

‘उम्मीद’ पोर्टल पर अब हर वक्फ संपत्ति का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा। ज़मीन की पैमाइश, जियो टैगिंग और रिकार्ड का डिजिटलीकरण किया जाएगा। इस प्रक्रिया से वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर पारदर्शिता आएगी और लंबे समय से चले आ रहे गैरकानूनी कब्जों की पहचान हो सकेगी। सरकार का इरादा है कि हर धार्मिक और सार्वजनिक संपत्ति की गिनती हो, उनका लेखा-जोखा सामने आए और जवाबदेही तय हो। इससे उन ट्रस्टों पर भी नजर रखी जा सकेगी जो अभी तक बंद दरवाज़ों के पीछे ही सारी कार्यवाही करते थे।

विरोध के सुर और उसके पीछे की मंशा

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस पोर्टल को “गैरकानूनी” करार देते हुए मुस्लिम समुदाय से अपील की है कि वे इस पर अपनी संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन न करें। संगठन ने कोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि जब तक कोई अंतिम फैसला न आए, तब तक इससे दूर रहना चाहिए। लेकिन इस अपील के पीछे की चिंता साफ है— दशकों से जिन संपत्तियों पर बिना जवाबदेही नियंत्रण रहा, अब वह नियंत्रण खत्म हो सकता है। ‘Umeed’ पोर्टल को लेकर सरकार और सिस्टम दोनों तैयार हैं, लेकिन असली टकराव उस मानसिकता से है जो पारदर्शिता से डरती है और जवाबदेही को टालना चाहती है।