बेंगलुरु में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की जीत के बाद जश्न के दौरान मची भगदड़ में 11 लोगों की मौत हुई, लेकिन इस बड़े हादसे पर विपक्ष की चुप्पी हैरान करने वाली है। वही विपक्ष, जिसने उत्तर प्रदेश के महाकुंभ में भगदड़ पर योगी सरकार को घेरा था, अब एक शब्द नहीं बोल रहा। न कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस, न मोमबत्ती मार्च, और न ही कोई नैतिकता की दुहाई। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विपक्ष की संवेदनाएं चुनिंदा घटनाओं तक सीमित हैं?

महाकुंभ जैसी आस्था की सबसे बड़ी भीड़भाड़ वाली धार्मिक यात्रा में जब हादसे हुए, तो विपक्ष ने उन्हें ‘सरकारी हत्या’ और ‘नरसंहार’ तक कह दिया। देशभर में बदनाम करने की मुहिम छेड़ दी गई। लेकिन बेंगलुरु में एक क्रिकेट टीम की जीत के बाद हुए समारोह में हुई त्रासदी पर वही आवाजें खामोश हैं। कांग्रेस शासित राज्य में हुई इस लापरवाही पर कोई जवाबदेही तय करने की मांग नहीं उठी। यह चुप्पी इस बात का संकेत है कि विपक्ष की आलोचना सच्ची संवेदना से नहीं, बल्कि सियासी सुविधा से प्रेरित है।

दिल्ली में राजनीतिक गतिविधियां तेज

इस बीच, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय मांगा है। बताया जा रहा है कि वह राज्य को केंद्र से मिलने वाली लंबित राशि को लेकर चर्चा करना चाहती हैं। यह वही ममता बनर्जी हैं, जो कुछ दिन पहले तक केंद्र सरकार पर हमलावर थीं, अब उसी केंद्र के सामने अपनी मांगों के साथ झुकती नजर आ रही हैं। साथ ही, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पासपोर्ट रिन्यू कराने की इजाजत मिल गई है, लेकिन कोर्ट ने साफ कर दिया है कि उन्हें विदेश यात्रा की मंजूरी नहीं दी गई है। वहीं, CBI ने इस पर अपनी आपत्तियां भी दर्ज की हैं, जिससे यह मामला और उलझ सकता है।

इन घटनाओं ने विपक्ष को न केवल घेरा है, बल्कि उसकी रणनीति और नैतिकता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।