पाकिस्तान इस समय गहरे कूटनीतिक संकट से गुजर रहा है। भारत से बढ़ते तनाव के बीच उसे जिन देशों से समर्थन की उम्मीद थी—जैसे अमेरिका, रूस और चीन—वहीं अब उससे दूरी बना रहे हैं। शहबाज शरीफ सरकार की कोशिशें लगातार नाकाम होती जा रही हैं, जबकि देश के भीतर हालात और बिगड़ते जा रहे हैं। आतंकवाद, अस्थिरता और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग पड़ता पाकिस्तान आज खुद अपने ही जाल में उलझा नजर आ रहा है।
रूस की चुप्पी से टूटी उम्मीदें
पाकिस्तान ने हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को एक विशेष पत्र भेजा, जिसमें भारत-पाक तनाव को कम करने में भूमिका निभाने की अपील की गई थी। यह पत्र विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव को सौंपा गया। लेकिन इसी दौरान रूस और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच भारत-पाक मसले पर बातचीत ने पाकिस्तान की बेचैनी और बढ़ा दी। इस बातचीत में पाकिस्तान को कोई विशेष तवज्जो नहीं दी गई, जिससे साफ है कि रूस की प्राथमिकताओं में पाकिस्तान अब पीछे चला गया है।
देश के भीतर भी बढ़ रही टूटफूट
सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, पाकिस्तान के अंदर भी हालात बेहद चिंताजनक होते जा रहे हैं। जैश-ए-मोहम्मद के टॉप कमांडर मौलाना अब्दुल अज़ीज़ ईसर की बहावलपुर में रहस्यमयी मौत ने खुफिया एजेंसियों को चौंका दिया है। बहावलपुर को जैश की गतिविधियों का गढ़ माना जाता है, और वहीं इस तरह की घटना से यह स्पष्ट हो गया है कि आतंकी नेटवर्क अब पाकिस्तान के लिए भी खतरा बन चुके हैं।
भारत द्वारा चलाए गए हालिया अभियानों—जैसे ऑपरेशन सिंदूर और वॉटर स्ट्राइक—ने पाकिस्तान की रणनीतिक स्थिति को और कमजोर कर दिया है। इन कार्रवाइयों ने केवल सैन्य संदेश ही नहीं दिया, बल्कि यह भी दर्शा दिया कि भारत अब हर मोर्चे पर आक्रामक रुख अपना रहा है। ऐसे में पाकिस्तान की हालत यह हो गई है कि वह न अपनों पर भरोसा कर पा रहा है, न दुनिया उसे गंभीरता से ले रही है।