संसद का मानसून सत्र इस बार केवल विधायी कामकाज तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह सत्र भारतीय न्यायिक इतिहास में एक अभूतपूर्व मोड़ का गवाह बन सकता है। खबरें हैं कि केंद्र सरकार दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। उन पर कथित रूप से नकद लेनदेन, पद के दुरुपयोग और न्यायिक मर्यादा के उल्लंघन के आरोप हैं। केंद्र सरकार ने इस संवेदनशील प्रस्ताव को लेकर राजनीतिक सहमति जुटाने की कवायद भी शुरू कर दी है।
मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त तक चलेगा, लेकिन उससे पहले ही दिल्ली की राजनीतिक गलियों में हलचल तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर हाल ही में एक के बाद एक अहम बैठकें हुईं, जिनमें गृह मंत्री अमित शाह, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा शामिल रहे। सूत्रों के अनुसार, इन बैठकों का प्रमुख एजेंडा जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को लेकर रणनीति तय करना था।
सभी दलों से संपर्क में सरकार
सरकार इस संवैधानिक प्रक्रिया को गंभीरता से ले रही है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने इस मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत शुरू कर दी है ताकि संसद में प्रस्ताव पेश होने पर उसे पर्याप्त समर्थन मिल सके। माना जा रहा है कि यह प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा में पेश किए जाने से पहले राजनीतिक सहमति और व्यापक समर्थन सुनिश्चित किया जाएगा।
जज वर्मा पर लगे गंभीर आरोप
जज वर्मा पर लगे आरोपों में न केवल फैसलों में पक्षपात और पद के दुरुपयोग की बात कही गई है, बल्कि न्यायिक आचरण की मर्यादा के उल्लंघन का भी मामला उठाया गया है। कुछ सांसदों ने दावा किया है कि उनके पास इस संबंध में पर्याप्त सबूत हैं। सरकार का इरादा है कि इस प्रस्ताव के ज़रिए न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की मिसाल कायम की जाए।
अगर यह प्रस्ताव संसद में पेश होता है तो यह भारत के संवैधानिक इतिहास की एक बड़ी घटना होगी, जिसकी गूंज आने वाले समय तक सुनी जाएगी।