पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव और तेज हो गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य में 13 डिटेंशन कैंप बनाए जाने की घोषणा की है, जिसके जरिए घुसपैठियों और अवैध नागरिकों की पहचान कर उन्हें निरुद्ध करने की योजना है। इस कदम को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कड़ा विरोध जताया है और केंद्र पर “राजनीतिक शक्ति हड़पने” का आरोप लगाया है। वहीं, भाजपा का कहना है कि यह अभियान राष्ट्रीय सुरक्षा और अवैध घुसपैठ रोकने के लिए जरूरी है।

अधिकारिक सूत्रों के अनुसार, राज्य में लगभग 1.5 करोड़ लोगों की नागरिकता और मतदाता पहचान पत्रों की गहन जांच की जा रही है। इनमें कथित तौर पर घुसपैठियों और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नागरिकता पाने वाले लोगों की पहचान की जाएगी। केंद्र का दावा है कि यह कार्रवाई असम की तर्ज पर एनआरसी और नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया को लागू करने का हिस्सा है।

राज्यभर में सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ा दी गई है। सूत्रों के मुताबिक, भारतीय सेना और केंद्रीय बलों की मदद से विभिन्न जिलों में संयुक्त अभियान चलाया जा रहा है। केंद्र सरकार का कहना है कि यह कदम किसी राजनीतिक उद्देश्य से नहीं बल्कि आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाया गया है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र की इस कार्रवाई को “लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला” बताया। उन्होंने कहा कि भाजपा चुनाव से पहले बंगाल में डर और असुरक्षा का माहौल बनाना चाहती है। तृणमूल कांग्रेस ने इसे सीधे तौर पर “पॉवर सीज” करार देते हुए दावा किया कि केंद्र बंगाल सरकार की शक्तियों को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है।

भाजपा नेताओं का कहना है कि घुसपैठ और फर्जी वोटिंग पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी समस्या है। पार्टी का दावा है कि ममता बनर्जी सरकार इस मुद्दे पर कार्रवाई करने में विफल रही है और अब केंद्र की पहल से अवैध गतिविधियों पर नकेल कसी जाएगी।

पश्चिम बंगाल में चुनावी माहौल के बीच केंद्र और राज्य सरकार का यह टकराव और गहराने की आशंका है। डिटेंशन कैंप और नागरिकता जांच अभियान आने वाले महीनों में राजनीतिक बहस के केंद्र में रहेंगे। अब देखना होगा कि मतदाता इस मुद्दे को कैसे देखते हैं और चुनावी नतीजों पर इसका क्या असर पड़ता है।