वॉशिंगटन। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ को लेकर बड़ा कानूनी संघर्ष शुरू हो गया है। सॉलिसिटर जनरल जॉन सॉयर ने न्यायाधीशों से उन शुल्कों को बरकरार रखने की अपील की है जिन्हें अपीलीय अदालत ने गैरकानूनी करार दिया था। सरकार ने तर्क दिया कि टैरिफ न केवल आर्थिक सुरक्षा बल्कि यूक्रेन युद्ध के बीच वैश्विक रणनीति का भी अहम हिस्सा हैं।
प्रशासन का दावा: टैरिफ हटे तो अमेरिका गरीब राष्ट्र बनेगा
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर दस्तावेज में लिखा, “टैरिफ के साथ, संयुक्त राज्य अमेरिका एक समृद्ध राष्ट्र है; टैरिफ के बिना, एक गरीब राष्ट्र।” प्रशासन का कहना है कि शुल्क हटाने से अमेरिका का रक्षा-औद्योगिक आधार कमजोर होगा, 1.2 ट्रिलियन डॉलर का वार्षिक व्यापार घाटा और बढ़ जाएगा और विदेशी वार्ताओं पर अनिश्चितता छा जाएगी।
यूक्रेन युद्ध से जोड़ा गया टैरिफ का मसला
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ये टैरिफ रूस के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों और यूक्रेन में शांति बहाल करने के प्रयासों का हिस्सा हैं। सरकार का तर्क है कि भारतीय ऊर्जा खरीद पर लगाए गए शुल्क सीधे तौर पर रूस के युद्ध को आर्थिक रूप से कमजोर करने और अमेरिकी हितों की रक्षा करने के लिए आवश्यक हैं।
वैश्विक साझेदारियों का हवाला
अमेरिकी प्रशासन ने दावा किया कि टैरिफ नीति के कारण छह प्रमुख व्यापारिक साझेदारों और 27 देशों वाले यूरोपीय संघ के साथ रूपरेखा समझौते हो चुके हैं। इन समझौतों से अमेरिका की वैश्विक स्थिति मजबूत हुई है और देश “आर्थिक रूप से व्यवहार्य और सम्मानित” राष्ट्र के रूप में पुनः उभरा है।
अपील अदालत का फैसला और कानूनी बहस
ट्रंप की आपातकालीन अपील अमेरिकी अपीलीय न्यायालय के 7-4 के फैसले के बाद आई है। बहुमत वाले न्यायाधीशों ने माना कि 1977 का अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम राष्ट्रपति को कांग्रेस की मंजूरी के बिना टैरिफ लगाने की अनुमति नहीं देता। वहीं, असहमत न्यायाधीशों का कहना था कि यह कानून आपातकालीन परिस्थितियों में राष्ट्रपति को आयातों पर व्यापक नियंत्रण देता है।
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला अब अमेरिकी आर्थिक नीतियों और राष्ट्रपति की शक्तियों को लेकर मिसाल कायम कर सकता है। यदि अदालत शुल्कों को असंवैधानिक मानती है तो टैरिफ नीति ध्वस्त हो जाएगी, वहीं यदि सरकार का पक्ष स्वीकार होता है तो ट्रंप द्वारा शुरू की गई व्यापारिक रणनीति को कानूनी मजबूती मिलेगी। आने वाले हफ्तों में कोर्ट का फैसला न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार समीकरणों पर भी गहरा असर डाल सकता है।