उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानों और भोजनालयों में क्यूआर कोड (QR Code) अनिवार्य किए जाने के फैसले पर अब कानूनी विवाद खड़ा हो गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद झा और सामाजिक कार्यकर्ता आकार पटेल ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिस पर आज सुनवाई होनी है।

उत्तर प्रदेश में 11 जुलाई से कांवड़ यात्रा शुरू हुई है। राज्य सरकार ने यात्रा के दौरान सुरक्षा, स्वच्छता और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं हवाई सर्वेक्षण कर तैयारियों की समीक्षा की और अधिकारियों को ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति अपनाने के निर्देश दिए हैं।

यात्रा मार्ग पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्य सुरक्षा विभाग की मोबाइल लैब्स, क्यूआर कोड स्कैनर और 24×7 निरीक्षण की व्यवस्था की गई है। सरकार के अनुसार, दुकानों पर क्यूआर कोड अनिवार्य करने का उद्देश्य भोजनालयों की प्रमाणिकता और खाद्य लाइसेंस की पारदर्शी जानकारी उपलब्ध कराना है, जिससे तीर्थयात्रियों को स्वच्छ और सुरक्षित भोजन सुनिश्चित किया जा सके।

हालांकि, कुछ संगठनों और व्यक्तियों ने इस फैसले को धार्मिक भेदभाव बताते हुए विरोध किया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह निर्णय पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का उल्लंघन करता है और एक विशेष समुदाय को लक्षित करता है। वहीं, हिंदू संगठनों ने इस पहल का समर्थन करते हुए इसे सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिहाज से जरूरी बताया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में आज होने वाली सुनवाई से स्पष्ट होगा कि कांवड़ यात्रा के दौरान लागू नियमों की संवैधानिक वैधता कितनी मजबूत है। यह मामला सिर्फ एक राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था का नहीं, बल्कि धार्मिक यात्राओं में सरकारी दखल और नागरिक अधिकारों की संतुलन का भी विषय बन चुका है।

यूपी सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर क्यूआर कोड अनिवार्यता को लेकर उठे विवाद ने धार्मिक और कानूनी बहस को नया मोड़ दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अब पूरे देश की नजर टिकी है, जो आने वाले समय में इस प्रकार की नीतियों की दिशा तय कर सकता है।