संसद के मॉनसून सत्र से ठीक पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद शशि थरूर के बयान ने पार्टी के भीतर हलचल मचा दी है। थरूर ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि “राष्ट्र पहले आता है, पार्टियां बाद में”, और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वे देश की सेना और सरकार के समर्थन के अपने रुख पर कायम रहेंगे। इस बयान को पार्टी नेतृत्व, विशेषकर राहुल गांधी की लाइन से खुला विरोध माना जा रहा है।
थरूर ने अपने बयान में कहा, “बहुत से लोग मेरे रुख की आलोचना करते हैं, लेकिन मैं अपनी बात पर कायम हूं, क्योंकि यह देश के हित में है। राष्ट्र सर्वप्रथम हमेशा से मेरा दर्शन रहा है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे राजनीति के ज़रिए और राजनीति से बाहर भी देश की सेवा करने के लिए भारत लौटे हैं।
उनका यह बयान ऐसे समय पर आया है जब कांग्रेस ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और उससे जुड़े मुद्दों पर सरकार की कड़ी आलोचना की है। वहीं, शशि थरूर पहले भी इस सैन्य अभियान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सराहना कर चुके हैं, जिस कारण उन्हें पार्टी के भीतर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
कांग्रेस के भीतर थरूर के इस रुख को लेकर असंतोष है। कई नेता इसे पार्टी लाइन के खिलाफ बताते हुए उनसे सफाई की मांग कर चुके हैं। हालांकि थरूर का कहना है कि देश संकट में हो, तो राजनीतिक दलों को एकजुट होकर राष्ट्रहित में खड़ा होना चाहिए, चाहे वैचारिक मतभेद कुछ भी हों।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, थरूर का यह बयान कांग्रेस के भीतर गुटबाजी और वैचारिक असहमति को उजागर करता है। यह भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या थरूर आने वाले समय में पार्टी से अलग राह चुन सकते हैं या उनके बयान केवल एक विचारधारा के तहत दिए गए व्यक्तिगत विचार हैं।
क्या कांग्रेस से अलग होंगे शशि थरूर?
थरूर ने अभी तक पार्टी छोड़ने का कोई संकेत नहीं दिया है, लेकिन संसद सत्र की शुरुआत से पहले उनका यह बयान कांग्रेस के लिए एक और सिरदर्द बन सकता है। आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी नेतृत्व इस असहमति को किस तरह संभालता है और थरूर अपने रुख पर कितनी मजबूती से टिके रहते हैं।