देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वीकार कर लिया है। उन्होंने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है। यह इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब संसद का मानसून सत्र शुरू होने वाला है, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल और तेज हो गई है। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने इस्तीफे की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उपराष्ट्रपति के फैसले का सम्मान करते हुए उनके बेहतर स्वास्थ्य की कामना की है। सोशल मीडिया पर जारी एक संदेश में उन्होंने लिखा, “जगदीप धनखड़ जी ने हमेशा संविधान की गरिमा को बनाए रखा है। मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्रार्थना करता हूं।”

कार्यकाल के बीच इस्तीफा, सियासी अटकलें तेज

धनखड़ का कार्यकाल जुलाई 2027 तक था, लेकिन उन्होंने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही पद छोड़ दिया। उनकी अचानक की गई यह घोषणा न केवल संसद के भीतर बल्कि राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि इस्तीफे के पीछे सिर्फ स्वास्थ्य कारण नहीं हो सकते।

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “इस्तीफे की टाइमिंग बेहद अहम है। जब संसद का सत्र शुरू हो रहा है और कई संवेदनशील विधेयक चर्चा के लिए सूचीबद्ध हैं, तब उपराष्ट्रपति का इस्तीफा देना सवाल खड़े करता है।”

धनखड़ की भूमिका और अब तक का कार्यकाल

जगदीप धनखड़ ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। इससे पहले वे पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में कार्य कर चुके हैं और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे हैं। राज्यसभा के सभापति के रूप में उनकी भूमिका को लेकर कई बार विवाद भी हुआ, खासकर विपक्ष के साथ टकराव के मुद्दों पर।

संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति पद खाली होने की स्थिति में 6 महीने के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव कराया जाना आवश्यक है। तब तक राज्यसभा की कार्यवाही के संचालन की जिम्मेदारी राष्ट्रपति द्वारा नामित वरिष्ठ सदस्य निभा सकते हैं।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का कार्यकाल बीच में छोड़ना न केवल संवैधानिक रूप से अहम है, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी कई सवाल खड़े करता है। आगामी दिनों में यह स्पष्ट होगा कि यह फैसला केवल स्वास्थ्य कारणों से लिया गया, या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक रणनीति छिपी है।