सुप्रीम कोर्ट ने वोटर लिस्ट रिवीजन और स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) पर उठे विवाद में चुनाव आयोग के फैसले को सही ठहराया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को वोटर सत्यापन के लिए पुख्ता सबूत नहीं माना जा सकता और इसकी जांच जरूरी है। इस फैसले ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की मांगों को करारा झटका दिया है, जो वोटर लिस्ट रिवीजन के खिलाफ संसद से सड़क तक विरोध कर रहे थे।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा, “चुनाव आयोग का यह कदम सही है कि आधार कार्ड की विश्वसनीयता की जांच होनी चाहिए।” कोर्ट ने यह भी साफ किया कि 2003 तक वोटर लिस्ट में शामिल लोगों को कोई अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं है। सुनवाई के दौरान कांग्रेस के वकील अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग के रुख पर सवाल उठाए, लेकिन कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया।

वोटर लिस्ट रिवीजन का मुद्दा तब गरमाया जब राहुल गांधी ने SIR प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसे “वोट चोरी” का प्रयास बताया। उन्होंने दावा किया कि इससे अल्पसंख्यक और गरीब मतदाताओं को निशाना बनाया जा रहा है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि मृत या गैर-मौजूद लोगों को वोटर लिस्ट से हटाना और गलतियों को सुधारना SIR का उद्देश्य है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करता है।

चुनाव आयोग ने कोर्ट में दलील दी कि आधार सत्यापन से फर्जी मतदाताओं की पहचान हो सकती है, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं किया गया है। आयोग ने बताया कि 2024 में 1.5 करोड़ मृत मतदाताओं को वोटर लिस्ट से हटाया गया। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की, “यह कदम स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव के लिए जरूरी है।”

इस फैसले के बाद विपक्षी गठबंधन में भी राहुल गांधी की रणनीति पर सवाल उठने लगे हैं। कुछ नेताओं ने इसे “गलत मुद्दा” करार दिया। अब सवाल उठ रहा है कि क्या चुनाव आयोग इस मामले में और सख्ती करेगा।

यह फैसला चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि विपक्ष इस मुद्दे पर अपनी रणनीति कैसे बदलता है।