पाकिस्तान में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) और सुरक्षा बलों के बीच हुई हिंसक झड़पों में अब तक 250 से अधिक लोगों की मौत हो गई है और करीब 1,500 लोग घायल हुए हैं। कई घायलों की हालत गंभीर बताई जा रही है। यह हिंसा 9 अक्टूबर से जारी TLP के प्रदर्शन के दौरान हुई, जिसका उद्देश्य गाजा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पीस प्लान का विरोध करना था।
TLP के प्रमुख साद हुसैन रिजवी ने प्रदर्शन का नेतृत्व किया। पार्टी प्रवक्ता के अनुसार, रिजवी को भी तीन गोलियां लगीं और उनकी हालत नाजुक है। उन्हें पास के एक मेडिकल सेंटर में भर्ती कराया गया है, जहां उनका इलाज जारी है। प्रदर्शनकारी लाहौर से इस्लामाबाद की ओर मार्च कर रहे थे और उनका लक्ष्य अमेरिकी दूतावास के बाहर एक समर्थक रैली करना था।
TLP की स्थापना 2015 में खादिम हुसैन रिजवी ने की थी। उनके निधन के बाद 2021 से संगठन की कमान उनके बेटे साद हुसैन रिजवी संभाल रहे हैं। TLP का उद्देश्य “निज़ाम-ए-मुस्तफा” यानी इस्लामी शासन लागू करना बताया गया है। संगठन अपने कट्टरपंथी रुख और हिंसक प्रदर्शन के लिए जाना जाता है। 2021 में रिजवी की गिरफ्तारी के बाद TLP पर प्रतिबंध लगाया गया था, जिसे बाद में हटा लिया गया।
घटना से पहले साद रिजवी ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने सुरक्षा बलों से फायरिंग रोकने का अनुरोध किया और कहा कि वह बातचीत के लिए तैयार हैं। वीडियो में पृष्ठभूमि में गोलीबारी की आवाज़ें भी सुनाई दे रही थीं। प्रदर्शनकारी अपने मार्च में छड़, रॉड और ईंटें लेकर धार्मिक नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे।
इस हिंसा को रोकने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने गृहमंत्री मोहसिन नकवी के साथ उच्चस्तरीय बैठक की। पंजाब प्रांत में 1,200 से अधिक अर्धसैनिक बल तैनात किए गए ताकि मार्च को इस्लामाबाद तक पहुंचने से रोका जा सके।
अमेरिकी दूतावास ने भी मार्च से पहले सुरक्षा चेतावनी जारी की थी और अमेरिकी नागरिकों को सतर्क रहने की सलाह दी थी। इस हिंसा ने पाकिस्तान में राजनीतिक और सामाजिक तनाव बढ़ा दिया है और देश के अंदरूनी सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
विश्लेषकों के अनुसार, TLP का यह मार्च और उसके परिणाम पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरपंथ और राजनीतिक अस्थिरता की दिशा में महत्वपूर्ण संकेत देते हैं। आने वाले दिनों में स्थिति पर नजर रखी जाएगी और सरकार की सुरक्षा रणनीतियों को और मजबूत किया जाएगा।