संसद के मानसून सत्र के दौरान ऑपरेशन सिंदूर पर दो दिनों तक चली बहस में विपक्ष की रणनीति बिखरी-बिखरी नजर आई। एक ओर जहां सरकार इस मुद्दे पर पूरी तैयारी और एकजुटता के साथ उतरी, वहीं विपक्षी दलों के बीच तालमेल की कमी और बयानबाज़ी में असमंजस साफ तौर पर देखा गया।

बहस के दौरान कांग्रेस इस मुद्दे पर सबसे अधिक मुखर दिखी, लेकिन पार्टी के ही वरिष्ठ नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य की सराहना करते नजर आए। राहुल गांधी द्वारा विपक्ष का एजेंडा सामने रखने के बाद जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी जवाब देने खड़े हुए, विपक्ष के कई सदस्यों ने भी सत्ता पक्ष के साथ तालियाँ बजाईं, जिससे नेता प्रतिपक्ष की स्थिति असहज हो गई।

समाजवादी पार्टी, शिवसेना (UBT) और शरद पवार की एनसीपी जैसे दलों ने इस राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर स्पष्ट और एकजुट रुख अपनाने के बजाय अलग-अलग सुर अपनाए। विपक्षी गठबंधन में इस असहमति ने स्पष्ट संकेत दिया कि रणनीतिक समन्वय की कमी अब भी विपक्षी एकता की सबसे बड़ी कमजोरी बनी हुई है।

राज्यसभा और लोकसभा में कांग्रेस के रवैये पर भी सवाल खड़े हुए हैं। मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी लाइन से इतर प्रतिक्रिया दी, जिससे कांग्रेस के भीतर मतभेद और नेतृत्व संकट की स्थिति सामने आई।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में न केवल ऑपरेशन महादेव और पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में की गई कार्रवाई की जानकारी दी, बल्कि कांग्रेस की रणनीति और पाकिस्तान को लेकर उसके पुराने रुख पर भी तीखे सवाल उठाए। प्रधानमंत्री के सीधे और तथ्य आधारित जवाबों ने विपक्ष को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया।

संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर हुई बहस ने विपक्ष की रणनीतिक कमजोरी और आंतरिक मतभेदों को उजागर कर दिया है। जहां केंद्र सरकार संगठित और स्पष्ट रुख के साथ सामने आई, वहीं विपक्ष बिखरा और असहज नजर आया। आगामी सत्रों में यह देखा जाना शेष है कि क्या विपक्ष इस विफलता से सबक लेकर एकजुटता की ओर कदम बढ़ाएगा, या फिर इसी तरह सरकार के सामने लगातार कमजोर पड़ता रहेगा।