जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के बाद उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा पांच विधायकों के मनोनयन की प्रक्रिया ने सियासी तनाव बढ़ा दिया है। गुपकार गठबंधन, जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) शामिल हैं, ने इसे असंवैधानिक बताते हुए जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। गठबंधन का आरोप है कि यह भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सत्ता हासिल करने की रणनीति है। कांग्रेस ने भी इस कदम का विरोध किया, जिससे सियासी हलचल तेज हो गई है।

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019, जिसे 2023 में संशोधित किया गया, उपराज्यपाल को दो कश्मीरी प्रवासियों (एक महिला), एक PoK विस्थापित, और दो अन्य सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार देता है। इससे विधानसभा की सीटें 90 से बढ़कर 95 हो जाएंगी, और बहुमत का आंकड़ा 46 से 48 हो जाएगा। एग्जिट पोल के अनुसार, NC-कांग्रेस गठबंधन को 40-48 और बीजेपी को 27-32 सीटें मिल सकती हैं।

गुपकार गठबंधन ने मनोनयन को लोकतंत्र के खिलाफ बताया। NC नेता रतन लाल गुप्ता ने कहा, “यह कदम जनादेश का अपमान है। विधायी शक्तियां चुनी हुई सरकार के पास होनी चाहिए।” कांग्रेस के रविंदर शर्मा ने इसे “अलोकतांत्रिक” करार देते हुए कहा, “यह बीजेपी की हार की बौखलाहट है।”

बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज किया। प्रवक्ता सुनील सेठी ने कहा, “मनोनयन संवैधानिक प्रक्रिया है। विरोध करने वालों ने न संविधान पढ़ा, न पुनर्गठन अधिनियम।” बीजेपी नेता रविंद्र रैना ने दावा किया कि उनकी पार्टी सहयोगियों के साथ सरकार बनाएगी।

हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 20 अगस्त के लिए निर्धारित की है। गृह मंत्रालय ने कोर्ट में कहा कि उपराज्यपाल को मनोनयन का विशेष अधिकार है। कानूनी विशेषज्ञों में मतभेद है; कुछ इसे संवैधानिक मानते हैं, जबकि अन्य मंत्रिपरिषद की सलाह को जरूरी बताते हैं।

हाईकोर्ट का फैसला जम्मू-कश्मीर की सियासी दिशा तय करेगा। यदि मनोनयन को मंजूरी मिलती है, तो बीजेपी के लिए सत्ता का रास्ता आसान हो सकता है। अन्यथा, NC-कांग्रेस गठबंधन उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में सरकार बना सकता है।